प्रयागराज :भूमि अधिग्रहण कानून 2013 (Land Acquisition Act 2013) लागू होने से पूर्व अधिग्रहीत भूमि का मुआवजा नए कानून के तहत दिया जाएगा या पुराने कानून से, इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को लंबी सुनवाई के बाद अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है. कोर्ट ने कहा है कि पुराने कानून के तहत अधिग्रहीत भूमि का मुआवजा यदि नये कानून के आने से पहले नहीं दिया गया है तो नए कानून के अनुसार दिया जाना चाहिए. इस आदेश के खिलाफ प्रदेश सरकार और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने पुनर्विचार अर्जी दाखिल की है.
मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने पुनर्विचार अर्जी की सुनवाई की. अपर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट की कार्यवाही से जुड़े. कहा कि इसी मुद्दे पर सुप्रीमकोर्ट ने एसएलपी और क्यूरेटिव पिटीशन खारिज कर दी है.
तुषार मेहता ने बहस की, कि सुप्रीमकोर्ट से एसएलपी खारिज होने के बाद भी हाईकोर्ट में उसके फैसले पर पुनर्विचार के लिए याचिका दाखिल की जा सकती है. ऐसे मामले में रिव्यू दाखिल करने का अधिकार है, क्योंकि सुप्रीमकोर्ट के आदेश में हाईकोर्ट का आदेश मर्ज नहीं हुआ है. इसलिए यहां लॉ ऑफ मर्जर लागू नहीं होगा. भले ही सुप्रीमकोर्ट ने याचिका कोई कारण बताकर खारिज की हो या बिना कारण बताए.
मेहता ने दलील दी कि भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 113 में प्रावधान है कि यदि किसी बात पर विवाद है तो केंद्र सरकार का आदेश उस संबंध में माना जाएगा. केंद्र सरकार ने अधिग्रहण की अधिसूचना जारी होने की तिथि से मुआवजा दिए जाने का निर्णय लिया है.
याची का कहना था कि सुप्रीमकोर्ट ने अपने कई निर्णयों में नए कानून से मुआवजा देने का निर्देश दिया है. क्योंकि केंद्र सरकार ने कोर्ट में ऐसा आश्वासन दिया है. अब सरकार अपने वादे से मुकर नहीं सकती है. इसके जवाब में तुषार मेहता की दलील थी कि यहां बात कानून की हो रही है न कि तथ्यों की. किसी विशेष मामले में सरकार के बयान देने से कानून नहीं बदल सकता है. कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है.