प्रयागराज :आज पूरा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. ऐसे में जब भी आज़ादी की लड़ाई की बात होती है तो देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर देने वालों में चंद्रशेखर आज़ाद का नाम सबसे पहले लिया जाता है.
चंद्रशेखर आज़ाद ने कम उम्र से ही अपनी आजाद खयाली और अंग्रेजों के प्रति अपने गुस्से को दिखाना शुरू कर दिया था. तत्कालीन इलाहाबाद जनपद में आज़ाद ने देश के लिए लड़ते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी.
आज़ाद के बहादुरी के चर्चे आज भी होते हैं. चाहे किसी भी धर्म के लोग हों, अपने नाम के आगे या पीछे आज़ाद जोड़ते देखे जा सकते हैं. स्वतंत्रता दिवस पर चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनी पर आधारित एक खास रोपोर्ट ..
चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने 14 वर्ष की उम्र में ही अंग्रेजों का विरोध शुरू कर दिया था. उनके साहस और निडर रवैये को देखकर अंग्रेज़ी हुकूमत इतनी परेशान हो गई कि उन्हें 16 कोड़े की सज़ा दी गई.
इतिहास के जानकार कहते हैं कि चंद्रशेखर आज़ाद में क्रांति का वो जज्बा था जिससे अंग्रेज़ी हुकूमत परेशान थी. सेंट्रल असेंबली में भगत सिंह द्वारा बम फेंकना, वॉयसराय की ट्रेन बम से उड़ाने की कोशिश करने जैसी बहादुराना घटनाओं के अगुवा वही थे. उन्होंने काकोरी कांड में सक्रिय रूप से भाग लिया था. पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए.
क्रांतिकारियों ने लखनऊ के निकट काकोरी नामक स्थान पर सहारनपुर-लखनऊ रेल गाड़ी को रोककर उसमें रखा खज़ाना लूट लिया. बाद में एक-एक करके सभी क्रांतिकारी पकडे़ गए पर चंद्रशेखर आज़ाद कभी भी पुलिस के हाथ नहीं आए.
मध्यप्रदेश में था गांव
इतिहासकारों के अनुसार चंद्रशेखर का जन्म मध्यप्रदेश के एक गांव में हुआ था. उनके पिता पंडित सीताराम तिवारी उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के किसी गांव के रहने वाले थे. क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद बचपन से ही साहसी थे. जब थोड़ा बड़े हुए तो वह अपने माता-पिता को छोड़कर अध्ययन के लिए बनारस पहुंच गए. वहां 'संस्कृत विद्यापीठ ' में दाखिला लेकर संस्कृत का अध्यन करने लगे.
उन दिनों बनारस में असहयोग आंदोलन की लहर चल रही थी. जब वाराणसी में अंग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ तो कम उम्र वाले चंद्रशेखर ने भी वह नज़ारा देखा. अंग्रेज़ों ने उन्हें पकड़ लिया और आंदोलनकरियों के बारे में बताने को कहा. उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया जहां उन्होंने बड़ी बहादुरी से सवालों का जवाब देकर खुद को राष्ट्रभक्त भारतवासी बताया.
उनसे पूछे गए सवाल और उनके जवाबों ने मजिस्ट्रेट को हिलाकर रख दिया था. अंग्रेजी हुकूमत के मजिस्ट्रेट ने उन्हें कोड़े की सजा दी जिसे उन्होंने मुस्कुराते हुए बर्दाश्त कर लिया. यहीं से उनके नाम के साथ आज़ाद जुड़ गया.
मजिस्ट्रेट के पूछे गए प्रश्न और उत्तर
● तुम्हारा नाम क्या है ?
- मेरा नाम आज़ाद है.