उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

Chandra Shekhar Azad birth anniversary: देश को गुलामी से मुक्त कराने में चंद्रशेखर आजाद का अतुलनीय योगदान

देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के आंदोलन में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का अतुलनीय योगदान रहा है. चंद्रशेखर आजाद पार्क में आज भी उनके शहादत स्थल पर लोग जुटते हैं

etv bharat
Chandra Shekhar Azad birth anniversary

By

Published : Jul 22, 2022, 10:09 PM IST

प्रयागराज: देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के आंदोलन में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का अतुलनीय योगदान रहा है. उनके जैसे वीरों के बलिदान का ही नतीजा है कि आज हम आजाद देश में रह रहे हैं. चंद्रशेखर आजाद पार्क में आज भी उनके शहादत स्थल पर लोग जुटते हैं और उन्हें आधुनिक भारत का भगवान मानते हुए नमन करते हैं. युवा आजाद की मूर्ति के आगे सर झुकाकर प्रणाम करते हुए उन्हें नमन करते हैं, तो बहुत से उनकी मूर्ति के सामने ही खड़े होकर उन्हें सैल्यूट करके श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. इलाहाबाद राष्ट्रीय संग्रहालय (Allahabad National Museum) में रखी हुई उनकी प्रिय पिस्टल बमतुल बुखारा को देखने के लिए भी बड़ी संख्या में लोग जाते हैं. आजाद को अपनी पिस्टल से बहुत प्यार था और उन्होंने उसका नाम बमतुल बुखारा रखा था. उनके शहीद होने के बाद अंग्रेज अफसर उस पिस्टल को इंग्लैंड लेते गए थे, जिसे काफी प्रयास के बाद वापस लाया गया है. जो आज भी संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई है.


चंद्र शेखर आजाद प्रयागराज के तत्कालीन अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे. जिसके बाद उस अल्फ्रेड पार्क का नाम बदलकर चंद्र शेखर आजाद के नाम पर कर दिया गया था. आज भी आजाद के शहादत स्थल पर उन्हें नमन करने वालों की भीड़ रोज जुटती है.

चंद्र शेखर आजाद जयंती
युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं चंद्र शेखर आजादचंद्र शेखर आजाद पार्क में उनकी मूर्ति के सामने खड़े होकर आज के युवा भी उन्हें याद करते हैं. पार्क में आजाद को नमन करने पहुंचे युवाओं का कहना है कि आज जिस उम्र में युवा अपना कैरियर को चुनते हैं. उन्होंने उस उम्र में देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. उन जैसे वीरों की शहादत का ही नतीजा है कि आज हम आजाद देश में सांस ले रहे हैं. यही वजह है कि आज के युवाओं को उनसे सीखना चाहिए कि किस तरह से देश की रक्षा के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना सब कुछ बलिदान किया है. जिसकी वजह से हमें अंग्रेजों की ग़ुलामी से आजादी मिली है.
इलाहाबाद राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी हुई उनकी पिस्टल

इसे भी पढ़ेंःबीजेपी सांसद रवि किशन बोले, संसद में बताऊंगा कि 4 बच्चों का पिता क्यों ला रहा है पॉपुलेशन कंट्रोल बिल

अयोध्या के रहने वाले छात्र सत्यम त्रिपाठी ने चंद्र शेखर आजाद को आधुनिक भारत का भगवान बताते हैं. उनका कहना है की आजाद और उनके जैसे देश के दूसरे शहीदों के बलिदान का ही नतीजा है कि आज हम अंग्रेजों से मुक्त आजाद भारत में रह रहे हैं. देश की आजादी का मुख्य नायक वो चंद्रशेखर को ही मानते हैं. उनके क्रांतिकारी विचारों को आजादी की लड़ाई का आधार बताते हैं. वहीं लखनऊ से छात्रों के एक दल को लेकर आजाद पार्क पहुंचे. उस दल के ओम प्रकाश का कहना है कि आने वाली पीढ़ियों को आजाद की वीरता की गाथा बताने के साथ ही उनका दर्शन करवाने के लिए वे इस पार्क में आए हैं.

चंद्रशेखर आजाद पार्क में आए पर्यटक
1976 में संग्रहालय आयी आजाद की पिस्टल चंद्रशेखर आजाद से मुठभेड़ के बाद अंग्रेज अफसर सर जॉन नॉट बावर बमतुल बुखारा को इंग्लैंड ले गये थे. देश की आजादी के बाद उनका प्रिय पिस्टल बमतुल बुखारा को देश वापस लाने के लिए प्रयास शुरू किये गए. जिसके बाद यूके से वो पिस्टल देश में वापस आ गयी. नवम्बर 1975 में इलाहाबाद संग्रहालय की तरफ से प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर उस पिस्टल को प्रयागराज के संग्रहालय को सौंपने की मांग की गयी. जिसके बाद 3 जुलाई 1976 को यह बमतुल बुखारा उसी स्थान तक पहुंच गयी, जहां से अंग्रेज उसे आजाद से अलग करके ले गए थे. तत्कालीन अल्फ्रेड पार्क में जिस स्थान पर 27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आजाद शहीद हुए थे. आज उसी पार्क में उनके शहादत स्थल से चंद कदमों की दूरी पर संग्रहालय में ये पिस्टल सुरक्षित रखी हुई है. जिसके बाद से ये पिस्टल इसी म्यूजियम की शान बढ़ा रही है.
चंद्रशेखर आजाद पार्क
इलाहाबाद में स्थित संग्रहालय की प्रदर्श व्याख्याता डॉ. संजू मिश्रा ने बताया कि कोल्ट कंपनी की ये पिस्टल 1903 की बनी हुई 32 बोर की हैमरलेस सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल है. जिसमें एक बार 8 गोलियों की एक मैगजीन लगती है. इसकी खासियत ये थी कि इसमें फायर करने के बाद धुंआ नहीं निकलता था. यही वजह थी कि अल्फ्रेड पार्क में आजाद की अंग्रेजों से मुठभेड़ हुई, तो वो किस पेड़ के पीछे से फायर कर रहे थे. अंग्रेज काफी देर तक नहीं जान पाए थे.आजाद का निशाना था अचूकबताया जाता है कि चन्द्र शेखर आजाद का निशाना काफी अच्छा था. उन्होंने झांसी में ओरछा के जंगलों में अपना अड्डा बनाया था और वहीं, पर वो निशानेबाजी किया करते थे. उसी दौरान उनका निशान इतना अचूक हो गया कि वो दूसरे क्रांतिकारियों को भी निशाने बाजी की ट्रेनिंग देते थे. आजाद 27 फरवरी 1931 को प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में मौजूद थे. उसी दौरान मुखबिरों से अंग्रेजों को जानकारी मिल गयी. जिसके बाद अंग्रेजी सेना ने पार्क को घेर लिया और काफी देर तक अंग्रेजों से आजाद ने अकेले ही लोहा लिया. इस दौरान आजाद ने अपने अचूक निशाने से तीन अंग्रेज अफसरों को मार गिराया और कई को घायल भी कर दिया था. लेकिन अंग्रेजी सैनिक ज्यादा संख्या में होने के बाद पकड़े जाने से पहले ही उन्होंने अपनी पिस्टल में बची आखिरी गोली खुद को मारकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली.ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

ABOUT THE AUTHOR

...view details