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असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में स्नातक में न्यूनतम अंकों की अर्हता को चुनौती

असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में स्नातक में न्यूनतम अंकों की अर्हता को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्चतर शिक्षा आयोग के अधिवक्ता ने कहा कि न्यूनतम अंकों की अनिवार्यता का आदेश वापस लिया जा चुका है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट

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Published : Mar 27, 2021, 9:31 PM IST

प्रयागराज: विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए स्नातक में न्यूनतम 45 प्रतिशत अंक होने की अनिवार्यता को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्चतर शिक्षा आयोग के अधिवक्ता ने कहा कि न्यूनतम अंकों की अनिवार्यता का आदेश वापस लिया जा चुका है. आयोग के वकील ने कोर्ट से यह जानकारी प्राप्त करने के लिए समय मांगा कि जिन अभ्यर्थियों के आवेदन निरस्त किए जा चुके हैं, उनको दोबारा अवसर दिया जाएगा या नहीं. मामले की अगली सुनवाई पांच अप्रैल को होगी. प्रदीप कुमार सोनकर व सात अन्य की याचिकाओं पर न्यायाधीश सलिल कुमार राय सुनवाई कर रहे हैं.

याची के अधिवक्ता जियाउद्दीन का कहना था कि 18 जुलाई 2018 की केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार अब सहायक प्रोफेसर नियुक्ति के लिए परास्तानक में 55 प्रतिशत और नेट या पीएचडी की अनिवार्यता कर दी गई है. स्नातक में न्यूनतम अंकों की अर्हता का कोई जिक्र नहीं है. इसलिए नए भर्ती विज्ञापन के ‌तहत स्नातक में न्यूनतम 45 प्रतिशत अंकों की अनिवार्यता को समाप्त किया जाए. कोर्ट ने इस मामले में आयोग से जवाब मांगा था. जिस पर आयोग के अधिवक्ता ने बताया कि स्नातक में द्वितीय श्रेणी पास होने की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है और अब सिर्फ पास होना जरूरी है.

नियुक्ति पत्र जारी करने का आदेश
एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंटर मीडिएट के बाद शिक्षक प्रशिक्षण का डिप्लोमा या‌ डिग्री लेने वालों को सहायक पद पर नियुक्ति के लिए योग्य मानते हुए चयनित याची शिक्षकों को एक माह में नियुक्ति पत्र जारी करने का आदेश दिया है. बेसिक शिक्षा विभाग ने इनको नियुक्ति पत्र देने से यह कह कर इनकार कर दिया था कि उन्होंने स्नातक किए बिना ही शिक्षण प्रशिक्षण प्राप्त किया है. इसलिए नियुक्ति के लिए अर्ह नहीं है. सोनी व दो अन्य की य‌ाचिका पर न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने यह आदेश दिया.

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याचीगण के अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहना था कि याचीगण ने 2019 की सहायक अध्यापक परीक्षा उत्तीर्ण की है. बीएसए मैनपुरी ने उनको यह कहते हुए नियुक्ति पत्र देने से इनकार कर दिया कि स्नातक की डिग्री के बिना प्रशिक्षण प्राप्त करने के कारण वह नियुक्ति की अर्हता नहीं रखते हैं. अधिवक्ता का कहना था कि विक्रम सिंह व चार अन्य तथा सूरज कुमार त्रिपाठी केस में हाईकोर्ट ने इसका समाधान कर दिया है कि एनसीटीई की गाइडलाइन के अनुसार इंटर मीडिएट के बाद प्रशिक्षण डिप्लोमा करने वाले अभ्यर्थी सहायक अध्यापक नियुक्त होने के लिए अर्ह हैं. ऐसे में बीएसए द्वारा नियुक्ति पत्र न देना अवैधानिक है. कोर्ट ने पूर्व में पारित आदेशों को दृष्टिगत रखते हुए याचीगण को एक माह में नियुक्ति पत्र जारी करने का आदेश दिया है.

वेतन व एरियर का भुगतान करने का आदेश
एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चयनित सहायक अध्यापिका को वेतन और एरियर का भुगतान करने का बीएसए पीलीभीत को आदेश दिया है. यह आदेश न्यायाधीश विवेक कुमार बिड़ला ने रामेश्वरी देवी की याचिका पर दिया है. याचिका पर अधिवक्ता सुदर्शन सिंह ने बहस की.

अ‌धिवक्ता का कहना था कि याची का चयन प्राथमिक विद्यालय भागडांडी ललौरी खेड़ा में सहायक अध्यापिका के लिए हो गया है. उसने ज्चाइन भी कर लिया. एक अन्य सहायक अध्यापक ठाकुर दास का भी यहीं पर चयन हुआ है. नियुक्ति को लेकर विवाद होने के कारण बीएसए ने याची का वेतन जारी नहीं किया. दोनों पक्षों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. बाद में ठाकुर दास ने यह कहते हुए याचिका वापस ले ली कि उसका चयन 68,500 सहायक अध्यापक भर्ती में दूसरे विद्यालय में हो गया है, जहां उसने ज्वाइन कर लिया. ठाकुर दास द्वारा अपना दावा वापस लेने के बाद अधिवक्ता का कहना था कि अब याची की नियुक्ति में कोई वैधानिक बाधा नहीं है. इसलिए उसे वेतन व एरियर जारी करने का आदेश दिया जाए. कोर्ट ने याची को वेतन व एरियर का भुगतान करने का आदेश दिया है.

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