प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पक्षकार को किसी अदालत से न्याय न मिल पाने की यथोचित वास्तविक आशंका है तो केस अन्य अदालत में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए. इसके लिए यह साबित करना जरूरी नहीं कि अदालत से केस नहीं हटाया गया तो न्याय विफल हो जाएगा. लेकिन अनुमान, अटकलों या काल्पनिक आशंका पर केस स्थानांतरित नहीं किया जा सकता. आशंका का ठोस आधार होना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि आपराधिक केस के विचारण का उद्देश्य उचित और निष्पक्ष न्याय दिलाना है. यदि विचारण निष्पक्ष स्वतंत्र नहीं होगा और पक्षपात पूर्ण होगा तो न्याय व्यवस्था दांव पर लग जायेगी. कोर्ट ने कहा कि न्याय निष्पक्षता संविधान की मूलभूत विशिष्टता है जो अपेक्षा करता है कि बिना किसी बाहरी दबाव के न्याय हो.
कोर्ट ने कहा कि पेशकार पीड़िता के अधिवक्ता का मित्र है. इतने मात्र से यह आशंका नहीं जताई जा सकती कि न्याय नहीं मिल पाएगा. कोर्ट ने कहा कि पत्रावली से इसके विपरीत तथ्य आ रहे हैं. इसके साथ ही कोर्ट ने जिला न्यायाधीश हमीरपुर की अदालत में विचाराधीन आपराधिक केस को अन्य अदालत में स्थानांतरित करने की याचिका खारिज कर दी. यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने शैलेन्द्र कुमार प्रजापति की याचिका पर दिया गया.
याची के खिलाफ विनवार थाने में धारा 376, 452 व 506 के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई जिसका केस कोर्ट में चल रहा है. याची का कहना था कि पेशकार ने पीड़िता की प्रतिपरीक्षा का अवसर समाप्त कर दिया. उसे न्याय मिल पाने की उम्मीद नहीं है. केस स्थानांतरित किया जाय.
कोर्ट ने पत्रावली देखी तो पूरा अवसर दिया गया. प्रतिपरीक्षा की अर्जी स्वीकार की गई. याची ही नहीं आया. उसे गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया. पत्रावली याची की आशंका को निराधार बता रही हैं.
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