प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सरकारी पदों पर नियुक्ति के समय अभ्यर्थी से नाबालिग रहते हुए किए गए अपराध के खुलासे की मांग उसके अनुच्छेद 21 में मिले निजता व गरिमा के मूल अधिकारों का उल्लंघन है. किसी भी नियोजक को नाबालिग रहते किए गये अपराधों के संबंध में जानकारी मांगने का अधिकार नहीं है. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि नाबालिग रहते हुए किए गए अपराध (जघन्य नहीं) में मिली सजा के आधार पर नियुक्ति से इनकार नहीं किया जा सकता.
कोर्ट ने कहा कि चयनित अभ्यर्थी नाबालिग रहते हुए किए गए अपराध (यदि वह जघन्य न हो) पर चुप रह सकता है. उसे इसकी जानकारी देने से इनकार करने का पूरा अधिकार है. ऐसा करना तथ्य छिपाना या झूठी घोषणा नहीं माना जाएगा. कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय बोर्ड से अपराध में मिली सजा को नियुक्ति से इंकार का आधार नहीं बनाया जा सकता. यह सरकारी नियुक्ति की अयोग्यता नहीं मानी जाएगी.
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हत्या, दुराचार जैसे जघन्य अपराध में दोषी होने पर छूट नहीं