प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे महंत नरेंद्र गिरि (mahant narendra giri) की आत्महत्या के मामले में आरोपी आनंद गिरि (anand giri) की जमानत अर्जी खारिज कर दी है. जमानत याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि नरेंद्र गिरी की आत्महत्या और आनंद गिरी द्वारा पैदा की गई परिस्थितियों के बीच में कोई संबंध नहीं है.
आनंद गिरि की जमानत अर्जी पर यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने दिया. कोर्ट ने कहा कि महंत की आत्महत्या और अभियुक्तों की करतूतों में सीधा संबंध दिखाई देता है हालांकि इसकी जांच का कोई सीधा फार्मूला नहीं है मगर यह सर्वमान्य है कि लगातार मानसिक उत्पीड़न व मानसिक पीड़ा की वजह से आत्महत्या की जाती है. इस स्थिति में अभियुक्तों द्वारा किया गया हर कार्य महत्वपूर्ण है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सुसाइड नोट और वीडियो जो महंत ने मरने से पहले बनाया था काफ़ी महत्वपूर्ण है इसलिए अभियुक्त के वकील के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि आत्महत्या और अभियुक्तों के कृत्यों में कोई संबंध नहीं है.
सुसाइड नोट से पता चलता है कि वह अपने पद और सामाजिक स्थिति को लेकर के काफी संवेदनशील थे. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और मठ बघाम्बरी के महंत थे. इस बात से काफी अवसाद में थे कि यदि आनंद गिरी उनके एडिटेड ऑडियो व वीडियो वायरल कर देंगे तो वह समाज में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे. इस चरित्र हनन के डर की वजह से उनको अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा पर गहरा आघात लगने का डर था. यह तथ्य सुसाइड नोट व वीडियो से भी साबित होता है जिसमें उन्होंने उन हालात का जिक्र किया है जो आनंद गिरि ने पैदा किया और जिसकी वजह से उन्होंने खुदकुशी की इसलिए सुसाइड नोट और वीडियो पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि मरने वाला व्यक्ति झूठ नहीं बोलता है. इस आधार पर आनंद गिरि और उनके साथियों द्वारा महंत को खुदकुशी के लिए मजबूर करने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता है.