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अब इस यूनिवर्सिटी के छात्रों को मिलेगा भोजन का ज्ञान, पढ़ाई जाएगी श्रीमद्भागवत गीता - श्रीमद्भागवत गीता में खान पान का विवरण

इलाहाबाद विवि के विद्यार्थी श्रीमद्भागवत गीता में दिए गए भोजन के विवरण के बारे में पढ़ेंगे. इसके लिए विवि ने 5 साल का एक कोर्स शुरू किया है.

भोजन के ज्ञान को पढ़ेंगे इलाहाबाद विवि के विद्यार्थी
भोजन के ज्ञान को पढ़ेंगे इलाहाबाद विवि के विद्यार्थी

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Published : Aug 15, 2023, 7:31 PM IST

श्रीमद्भागवत गीता में बताए गए भोजन के ज्ञान को पढ़ेंगे इलाहाबाद विवि के विद्यार्थी

प्रयागराज:सनातन वैदिक धर्म संस्कृति में मनुष्यों के रहन सहन के साथ ही उनके खान पान के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है. श्रीमद्भागवत गीता जैसे महाग्रंथ में भी खान पान की जानकारी 17 वें अध्याय में विस्तार से दी गई है. अब इलाहाबाद सेंट्रल विवि के विद्यार्थी इसकी शिक्षा दी जाएगी. गीता में सनातन वैदिक परंपरा दिए गए भोजन के विवरण को 5 साल के कोर्स के अंतर्गत पढ़ाया जाएगा. जिससे विद्यार्थियों को अपना और दूसरों का भविष्य संवारने में मिलेगा. कहा जाता है जैसे भोजन खाया जाता है, उसका प्रभाव व्यक्ति के मस्तिष्क, शरीर और व्यक्तित्व पर भी पड़ता है.

श्रीमद्भागवत गीता में भोजन का विवरण



श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भोजन:इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में बीएससी, एमएससी इन फैमिली एंड कम्युनिटी साइंसेज के छात्रों के अनुसार छात्रों को गीता में लिखे भोजन के प्रसार के बारे में बताया जाएगा. विभाग की अध्यक्ष डॉ. नीतू मिश्रा ने बताया कि इस कोर्स में छात्रों को वैदिक परपंरा के अनुसार भोजन बनाने और खाने के बारे में बताया जाएगा. श्रीमद्भागवत गीता के 17वें अध्याय में खान पान के बारे में श्लोक के माध्यम से बताया गया है. अध्याय में तामसिक, राजसी और सात्विक भोजन के बारे में विस्तार से बताया गया है. तीनों प्रकार के भोजन के फायद और नुकसान के बारे में भी बताया गया है. इसीलिए भोजन के प्रकार की शिक्षा के लिए इलाहाबाद सेंट्रल विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग में पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड कोर्स लॉंच किया गया है. छात्रों को यह भी पढ़ाया जाएगा कि उन्हें किस तरह का भोजन खाने से क्या लाभ और नुकसान होगा. व्यक्ति स्वस्थ रहने के लिए क्या खाएं और क्या न खाएं.

श्रीमद्भागवत गीता के 17 वें अध्याय में भोजन की जानकारी
खाने का प्रभाव शरीर के साथ ही मन पर भी: फैमिली एंड कम्युनिटी साइंसेज विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. नीतू मिश्रा ने बताया कि वैदिक काल से ही अपने देश में खानपान को लेकर धार्मिक ग्रंथों में वर्णन किया गया है. जिसके अनुसार खानपान को अपनाकर लोग स्वस्थ रह सकते हैं. न्यू एजुकेशन पॉलिसी के तहत अब इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में फैमिली एंड कम्युनिटी साइंसेज विभाग में गीता में बताए गए डाइट चार्ट की शिक्षा छात्रों को दी जाएगी. जिसका इस्तेमाल कर ये छात्र भविष्य में खुद के साथ ही दूसरों को भी स्वस्थ रखने में मददगार साबित होंगे.
श्रीमद्भागवत गीता से भोजन का ज्ञान लेंगे विद्यार्थी

गीता के 17वें अध्याय में है वर्णनःजिस वजह से अब श्रीमद्भागवत गीता के 17वें अध्याय में वर्णित भोजन से जुड़े श्लोकों का अर्थ बताने के साथ ही उसी के अनुसार भोजन करने की शिक्षा के बारे में छात्रों को पढ़ाया जाएगा. सात्विक भोजन में बिना किसी जीव की हत्या मिलने वाली भोजन सामग्री होती है. इससे शरीर के साथ ही मन, मस्तिष्क और व्यक्तित्व का विकास होता है. सात्विक भोजन की कैटेगरी में घी, दूध, दही, मक्खन, फल, सब्जियां, मेवा आदि आते हैं. जबकि राजसी भोजन में कड़वे, खट्टे, नमकीन, तीखे, गर्म किस्म के खाद्य पदार्थ होते हैं. जिससे शरीर में दुख सुख रोग आदि उत्पन्न होते हैं. इसी तरह से इमली, अमचूर, नींबू, लाल मिर्च, मांसाहार तामसी भोजन की कैटेगरी में आते हैं. जिसका बुरा असर शरीर के साथ ही मन मस्तिष्क पर भी पड़ता है.

श्रीमद्भागवत गीता में खान पान का विवरण
सात्विक भोजन स्वस्थ रहने के लिए सबसे बेहतर: गीता के 17वें अध्याय में बताया गया है कि तामसी भोजन करने से शरीर के साथ ही मन को भी नुकसान होता है. तामसी भोजन करने से काम और क्रोध के साथ सभी प्रकार की तामसी प्रवृत्तियां बढ़ती है. इसी तरह से सात्विक भोजन करने वालों के मन मे शांति रहती है और वे कई तरह की विकृतियों से भी बचे रहते हैं. इसी के साथ सात्विक भोजन करने वालों का शरीर ज्यादा स्वस्थ रहता है. उनकी इम्युनिटी ज्यादा मजबूत होती है. जबकि राजसी भोजन, तामसी भोजन के मुकाबले बेहतर माना जाता है. लेकिन, सात्विक भोजन स्वस्थ रहने के लिए सबसे बेहतर माना जाता है.
भोजन के ज्ञान को पढ़ेंगे इलाहाबाद विवि के विद्यार्थी
छात्राओं ने इस पहल की सराहना की:फैमिली एंड कम्युनिटी साइंसेज विभाग की शोध छात्राओं का कहना है कि उनके डिपार्टमेंट में गीता से जुड़ी जो शिक्षा दी जाएगी. वो छात्र छात्राओं के भविष्य के लिए काफी उपयोगी साबित होगी. क्योंकि कोरोना काल के बाद से ही अपने देश के साथ विदेशों में भी आयुर्वेद वैदिक रीति नीतियों का मान सम्मान बढ़ा है. इसी के साथ कोरोना काल के दौरान अपनी हार्ड इम्युनिटी की वजह से भारत के लोगों का दुनिया भर के लोगों ने लोहा माना है. उसी दौरान से अपने देश के साथ ही दूसरे देशों के लोग भी भारतीय वैदिक खानपान को अपनाने लगे हैं. इसी कड़ी में गीता में लिखे हुए सदियों पुराने खान पान से जुड़े ज्ञान का अध्ययन करवाया जाएगा, तो वह बेहतर होगा.

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