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जब चंद्रशेखर आजाद की राख को माथे लगाकर किया था लोगों ने अंतिम दर्शन - अल्फ्रेड पार्क

आज चंद्रशेखर आजाद की 115वीं जयंती (Chandra Shekhar Azad Birth Anniversary) है. उनकी याद में इलाहाबाद संग्रहालय (Allahabad Museum) आजाद गैलरी का निर्माण करने जा रहा है. बताया जाता है कि जब चंद्रशेखर की मौत हुई थी तो काफी संख्या में लोग चंद्रशेखर आजाद पार्क की तरफ निकल पड़े थे.

चंद्रशेखर आजाद की फोटो.
चंद्रशेखर आजाद की फोटो.

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Published : Jul 23, 2021, 12:42 PM IST

प्रयागराज: जिंदगी की हर सांस देश के लिए न्योछावर करने वाले चंद्रशेखर आजाद( Chandra Shekhar Azad) की आज यानी 23 जुलाई को 115 में जयंती है. जिसके चलते इलाहाबाद संग्रहालय (Allahabad Museum) से लेकर चंद्रशेखर आजाद पार्क उनको याद करने की तैयारी में जुटा है. संग्रहालय उनकी याद में आजाद गैलरी (Azad Gallery) का निर्माण करेगा. क्योंकि प्रयागराज से चंद्रशेखर आजाद का बहुत ही गहरा नाता रहा है.

चंद्रशेखर आजाद ने बलिदान के पूर्व इलाहाबाद में लंबा समय बिताया था. पड़ोसी जनपद प्रतापगढ़ और कौशांबी में भी उनकी सक्रियता थी. उनका ठिकाना तय नहीं रहता था. उनको खतरे का अंदाजा समय रहते लग जाता था. संग्रहालय के निदेशक ने बताया कि संग्रहालय से 300 मीटर दूर ही उनकी शहादत हुई थी और आज भी उनकी पिस्टल आम लोगों के दर्शन के लिए यहां पर मौजूद है.

चंद्रशेखर आजाद की जयंती.

वरिष्ठ जानकारों की मानें तो आज पूरे उत्तर भारत में क्रांति का कोई परिचायक है तो वो हैं शहीद चंद्रशेखर आजाद. आज भी आजाद पार्क स्थित उनकी प्रतिमा के सामने खड़े हो जाने से रोंगटे खड़े हो जाते हैं. समाजसेवी अभय अवस्थी ने बताया कि शहीद चंद्रशेखर आजाद देखते ही लोगों को पहचान लेते थे कि यह देश के हित में काम करने वाला है या अहित में.

उन्होंने बताया कि 27 फरवरी 1931 में जब उनकी शहादत हुई तो शहर के लोगों को जब पता चला की अल्फ्रेड पार्क (चंद्रशेखर आजाद पार्क) में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए वह शहादत को प्राप्त हुए हैं, तो कटरा हो चौक हो, सारी मार्केट तुरंत बंद हो गईं और लोग पार्क की तरफ निकल पड़े, लेकिन काफी ज्यादा संख्या में पुलिस बल लगने के कारण उनको वहां तक नहीं जाने दिया गया था.

इलाहाबाद संग्रहालय.

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संग्रहालय के निदेशक डॉ. सुनील गुप्ता के अनुसार इलाहाबाद संग्रहालय उनकी याद में आजाद गैलरी शुरू करने जा रहा है. इसमें ऑडियो विजुअल के माध्यम से भी उनकी शहादत को याद किया जाएगा. जिस तरह से आज शहर में इनकी शहादत और उनकी याद में तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. उसी तरह उनकी अंतिम यात्रा को भी अंग्रेजों द्वारा छुपाए जाने के बाद भी उनका शव जब रसूलाबाद घाट पर ले जाया गया तो लोग अपने को रोक नहीं पाए. रसूलाबाद घाट पर किसी तरह पहुंच गए और जब अंग्रेजों ने उनके शव का अंतिम संस्कार कर दिया तो उनके जाने के बाद लोग राख को अपने माथे पर लगाकर अंतिम दर्शन मान रहे थे.

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