प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकारी अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि वह अपनी शक्ति का इस्तेमाल तर्कपूर्णं और सही तरीके से करें. कोर्ट का कहना है कि केन कमिश्नर को चीनी मिलों के गन्ने का एरिया आरक्षित करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि चीनी मिलें न केवल क्षेत्र का विकास करती हैं वरन किसानों के हितों को संरक्षण प्रदान करती हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केन कमिश्नर को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया है कि गन्ना क्षेत्र के निर्धारण का क्राइटेरिया क्या है. करोड़ों का गन्ना मूल्य बकाया होने के बावजूद किसी मिल को अधिक क्षेत्र और भुगतान के आश्वासन व कम बकाये पर कम क्षेत्र आरक्षित किया गया है. कोर्ट ने केन कमिश्नर को याची को गन्ना क्षेत्र आरक्षण मामले में अपना आदेश संशोधित करने पर विचार का निर्देश दिया है. कोर्ट ने गन्ना सहकारी समिति से भी जवाब मांगा है. इस याचिका की सुनवाई 5 जनवरी को होगी.
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान की खंडपीठ ने जे एच वी सुगर मिल महाराजगंज की याचिका पर दिया है. मालूम हो कि केन कमिश्नर ने याची मिल के लिए 29.75 फीसदी गन्ना क्षेत्र आरक्षित करने का आदेश दिया है, जिसे चुनौती दी गई है. कोर्ट ने मुख्य स्थाई अधिवक्ता बिपिन बिहारी पांडेय और समिति के अधिवक्ता रवीन्द्र सिंह ने जानकारी मांगी. जिला गन्ना अधिकारी ने बताया कि पेराई सत्र 2014-15 का किसानों का भुगतान करने में याची ने पांच साल से अधिक समय लगाया और उसपर किसानों का 16 करोड़ बकाया है, इसलिए क्षेत्र में कटौती की गई है.
समिति की तरफ से कहा गया है कि केन कमिश्नर के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल की जानी चाहिए. यह याचिका पोषणीय नहीं है. इसके जवाब में याची मिल की तरफ से कहा गया कि केन कमिश्नर स्वयं अपर मुख्य सचिव रैंक का अधिकारी है. विशेष सचिव या सचिव उसके मातहत हैं, इसलिए उन्हें अपील सुनने का अधिकार नहीं है. गोला में स्थित चीनी मिल पर 335.85 करोड़ रुपये बकाया है और उसे 121.68 फीसदी क्षेत्र आरक्षित कर दिया गया है. याची ने बकाया 16 करोड़ 31 दिसंबर 2021 तक भुगतान करने का वचन दिया है, फिर भी उसका क्षेत्र घटा दिया गया है. इसपर कोर्ट ने केन कमिश्नर को क्षेत्र आरक्षित करने का क्राइटेरिया बताने का निर्देश दिया है.