प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण मामले में विभागों, निगमों व अधिकरणों में तालमेल न होने और विरोधाभासी हलफनामे दाखिल कर जवाबदेही एक दूसरे के कंधे पर डालने को गंभीरता से लिया है. 3 न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र से कहा कि अब सभी विभागों, निगमों व प्राधिकरणों की ओर से केवल वही बहस करेंगे. कोर्ट ने उनसे आदेशों के अनुपालन पर पर्यावरण सचिव का हलफनामा दाखिल करने को कहा है. साथ ही मुख्य सचिव को जांच कर जरूरी दिशा निर्देश जारी करने का आदेश दिया है.
यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति एमके गुप्ता एवं न्यायमूर्ति अजित कुमार की पूर्णपीठ ने दिया है. कोर्ट ने राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल व केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के प्रदूषण मानकों में भिन्नता को लेकर एएसजीआई शशि प्रकाश सिंह व केंद्र सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी से जानकारी मांगी है.
एसजीआई ने जलशक्ति मंत्रालय के हलफनामे में गंगा स्वच्छता अभियान के लिए 3 हजार करोड़ रुपये देने व खर्च का ब्यौरा पेश करते हुए कहा कि केंद्र सरकार इसकी मॉनिटरिंग कर रही है. कोर्ट ने कहा रिपोर्ट बहुत अच्छी है लेकिन वास्तविकता कुछ और है. रिपोर्ट में कहा गया है कि नाले बंद हैं और गंगा में गंदा पानी नहीं जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि गंगा का प्रदूषण कम नहीं हो रहा है, जितना उत्सर्जन है, शोधन क्षमता उससे काफी कम है. सुनवाई के दौरान याची के अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव व शैलेश सिंह ने कोर्ट के विभिन्न निर्देशों का पालन न किए जाने की बात कही.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 154 एसटीपी का निरीक्षण करने की बात कही है. बताया कि इनमें से 64 में एनजीटी मानक का पालन पाया गया लेकिन 42 में पालन नहीं पाया गया. जहां 48 एसटीपी बंद मिले.