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गलत बयानी से मिली जमानत की पैरिटी का अधिकार नहींः हाईकोर्ट - गलत बयानी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक न्याय व्यवस्था का काम अभियुक्त और अभियोजन के अधिकारों में संतुलन बनाए रखना है. नि:संदेह अभियुक्त के अधिकार महत्वपूर्ण हैं, किन्तु यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि अपराधी जेल में हों. ताकि समाज में सही संदेश जाए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट.

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Published : Jul 13, 2021, 4:10 AM IST

प्रयागराजःइलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो वाहनों से 157.570 किग्रा गांजे के साथ पकड़े गए याची को जमानत पर रिहा करने से इंकार कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने प्रयागराज, झूंसी के गांजा तस्करी के आरोपी धीरज कुमार शुक्ल की जमानत अर्जी को खारिज करते हुए दिया है.

हाईकोर्ट ने कहा कि अभियुक्त के प्रति सहानुभूति आपराधिक न्याय तंत्र को कमजोर बना सकती है. ऐसा होने से कानून के शासन के प्रति जन-विश्वास में कमी आ सकती है. कोर्ट ने कहा मादक पदार्थों की तस्करी करने वाले सामान्य मानव नहीं रह जाते. इसलिए न्यायिक विवेक का इस्तेमाल न्यायिक तरीके से किया जाना चाहिए. साथ ही यह भी कहा कि सह अभियुक्त को जमानत मिलने की पैरिटी (समानता) उस दशा में दुसरे अभियुक्त को नहीं दी जा सकती, जब गलत बयानी कर जमानत हासिल की गई हो.

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मालूम हो कि एसटीएफ की पुलिस टीम ने दो वाहनों से अवैध रूप से भारी मात्रा में गांजा तस्करी के आरोप में चार लोगों को पकड़ा था और एफआईआर दर्ज कराई थी. याची का कहना था कि ऐसे ही आरोप पर सह अभियुक्त को जमानत दी गई है. उसे भी जमानत पर रिहा किया जाए.

कोर्ट ने कहा एनडीटीएस एक्ट की धारा-37 की शर्तों की कसौटी पर खरा उतरने पर ही जमानत दी जा सकती है. मादक पदार्थ की कब्जे से बरामदगी पर उपधारणा यही होगी कि तस्करी का माल है. आरोपी के कब्जे से बरामदगी नहीं हुई, साबित करने का भार आरोपी पर होता है. पुलिस द्वारा दुर्भावना से फंसाने के आरोप को भी आरोपी को साबित करना होगा कि पुलिस ने किसी रंजिश के कारण उसे फंसाया है.

प्रश्नगत मामले में ग्रुप में संगठित अपराध किया गया है. अपराध का गवाह इसलिए मिलना कठिन होता है, क्यों कि अपराधियों के साथ राजनैतिक, वित्तीय संरक्षण व मसल पावर रहती है. गवाह डर के कारण सामने नहीं आते. कोर्ट ने कहा कि जमानत मिलने के बाद यह नहीं कह सकते कि वह अपराध की पुनरावृत्ति नहीं करेगा. ऐसे में जमानत मंजूर नहीं की जा सकती.

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