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चिन्मयानंद केस: पीड़िता को हाईकोर्ट से लगा झटका, SIT जांच के तरीके को अदालत ने सही माना

स्वामी चिन्मयानंद केस में पीड़िता को हाईकोर्ट से झटका लगा है. हाईकोर्ट ने कोर्ट ने एसआईटी जांच पर उठे सवालों को खारिज कर दिया है.

allahabad high court
पीड़िता छात्रा ने जांच प्रक्रिया पर जो सवाल उठाये थे

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Published : Apr 30, 2020, 11:33 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वामी सुखदेवानंद लॉ कॉलेज शाहजहांपुर की एलएलएम छात्रा से दुराचार और पीड़िता छात्रा के खिलाफ लगे ब्लैकमेलिंग के आरोपों की एसआईटी के जांच के तरीके को सही माना है. पीड़िता छात्रा ने जांच प्रक्रिया पर जो सवाल उठाये थे, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.

नियमानुसार होगी कार्यवाही

कोर्ट ने थाना लोधी रोड, नई दिल्ली में की गयी शिकायत की अलग से जांच करने की मांग को यह कहते हुए हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है कि एसआईटी ने पीड़िता के बयान और शिकायत सहित सभी पहलुओं पर विचार करते हुए अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी है, जिस पर कोर्ट नियमानुसार कार्यवाही करेगी.

तस्वीर की अलग से जांच कराने की मांग खारिज

कोर्ट ने स्वामी चिन्मयानंद द्वारा ली गई पीड़िता की तस्वीर की अलग से जांच कराने की मांग को भी निराधार बताया है. हाइकोर्ट ने एसआईटी द्वारा पीड़िता के परिवार के उत्पीड़न के आरोपों को भी तथ्यात्मक मानते हुए राहत देने से इंकार कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लापता छात्रा केस की मानीटरिंग के लिए गठित जनहित याचिका सुनवाई करते हुए दिया है.

एक नजर पिछले घटनाक्रम पर

स्वामी सुखदेवानंद ला कालेज शाहजहांपुर की एलएलएम छात्रा 24 अगस्त 2019 से लापता हो गई. इस खबर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने लड़की की तलाश करने का सख्त निर्देश दिया. 2 सितंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वह विशेष जांच टीम गठित कर लापता लड़की को कोर्ट में पेश करें. एसआईटी ने राजस्थान से लड़की को अपने दोस्तों के साथ बरामद किया और सुप्रीम कोर्ट में पेश किया. जहां उसका बयान दर्ज कर पीड़िता और परिवार को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को सौपा मामला

दुराचार के आरोपी स्वामी चिन्मयानंद से पांच करोड़ रुपये की मांग करने की वीडियो वायरल हुई. स्वामी की तरफ से पीड़िता पर ब्लैकमेलिंग करने की शिकायत की गई, जिसकी एफआईआर भी दर्ज की गई है. पीड़िता ने 5 सितंबर को लोधी रोड नई दिल्ली में विस्तृत शिकायत की. सुप्रीम कोर्ट ने ब्लैकमेलिंग और दुराचार दोनों मामलों की विवेचना की मानिटरिंग इलाहाबाद हाईकोर्ट को सौपी.

लखनऊ अदालत में हो रही सुनवाई

हाई कोर्ट के निर्देशानुसार एसआईटी ने सभी पहलुओं पर विचार कर पुलिस रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कर दी है. हाईकोर्ट के ही आदेश के तहत इस मामले की सुनवाई अब लखनऊ की अदालत में की जा रही है. पीड़िता की तरफ से हाईकोर्ट में अर्जी दी गई, जिसमें मांग की गई कि 5 सितंबर 2019 को लोधी रोड में दर्ज शिकायत की अलग से एफआईआर दर्ज कर निष्पक्ष विवेचना की जाए. एक अर्जी में पीड़िता ने परिवार का एसआईटी पर उत्पीड़न का आरोप लगाया और एसआईटी टीम के लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.

अलग से नहीं दर्ज होगी FIR

कोर्ट ने कहा चिन्मयानंद पर दुराचार के आरोप में एफआईआर पहले ही दर्ज है. दिल्ली में की गई शिकायत पहले से कायम की गई प्राथमिकी का विस्तृत स्वरूप है. अलग से एफआईआर दर्ज करने की जरूरत नहीं है. पीड़िता के धारा 164 के बयान, उसकी लिखित शिकायत को एसआईटी ने जांच के दायरे में लेकर विवेचना की है. एसआईटी जांच में कोई गड़बड़ी नहीं है. कोर्ट ने कहा कि आरोप पत्र धारा 376 (सी) में दाखिल किया है जबकि 376 के आरोप में पुलिस को रिपोर्ट पेश करनी चाहिए थी.

कोर्ट अपनी राय बनाने को लेकर स्वतंत्र

कोर्ट ने कहा कि पुलिस विवेचना के दौरान अपनी राय कायम करने के लिए स्वतंत्र है. पुलिस रिपोर्ट पेश होने के पश्चात साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर कोर्ट को भी अपनी राय बनाने का स्वतंत्र अधिकार है. कोर्ट साक्ष्यों के आधार पर पुलिस द्वारा लगाई गई धाराओं में परिवर्तन कर सकती है. पुलिस ने किस धारा में रिपोर्ट पेश की है, इससे मुकदमे की सुनवाई पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से किया इंकार

पीड़िता की तरफ से यह भी कहा गया कि स्वामी चिन्मयानंद ने उसकी अश्लील विडियो बनाई थी, उस मोबाइल फोन को एसआईटी ने जांच में बरामद नहीं किया है. पीड़िता फोन नंबर बताने में असमर्थ है. ऐसे में फोन की बरामदगी करने का औचित्य नहीं है. जहां तक पुलिस अभिरक्षा में पीड़िता के परिवार का उत्पीड़न करने का प्रश्न है जिस पर कोर्ट द्वारा कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कोर्ट ने कहा कि प्रेस कांफ्रेंस करने से जांच प्रभावित होने के आरोप में बल नही है. कोर्ट ने पीड़िता की तरफ से दाखिल अर्जियो पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है.

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