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HC ने कहा बच्ची का हित कानूनी अधिकार पर भारी, नाना-नानी की अभिरक्षा से दादा दादी को सौंपने से किया इनकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नानी से बच्ची की अभिरक्षा की मांग करने वाली दादा-दादी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी है. न्यायमूर्ति डॉक्टर वाई के श्रीवास्तव ने कहा कि नाबालिग को उसके नाना के पास रखना किसी भी तरह से अवैध और अनुचित नहीं है.

HC ने कहा बच्ची का हित कानूनी अधिकार पर भारी
HC ने कहा बच्ची का हित कानूनी अधिकार पर भारी

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Published : Oct 25, 2021, 10:34 PM IST

प्रयागराजः न्यायमूर्ति डॉक्टर वाई के श्रीवास्तव ने कहा कि नाबालिग को उसके नाना के पास रखना किसी भी तरह से अवैध और अनुचित नहीं है. हाईकोर्ट ने नानी से बच्ची की अभिरक्षा की मांग करने वाली दादा-दादी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बच्ची बचपन से ही अपने नाना के साथ रह रही है. अभिरक्षा का दावा करने वाला पिता बच्ची की मां की मौत से संबंधित एक आपराधिक मामले में आरोपी है. ये एक प्रासंगिक कारक है.

अन्य तथ्य जो महत्वपूर्ण हैं, वो बच्चे को एक सुखद घर में प्यार और अच्छी देखभाल, मार्गदर्शन, अच्छे और दयालु संबंध प्रदान करने की आवश्यकता है, जो बच्चे के चरित्र और व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है.

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है, न कि पक्षकारों द्वारा अभिरक्षा की मांग से संबंधित किए गए प्रतिस्पर्धी अधिकार हैं. दादा-दादी ने नाबालिग बच्ची की कस्टडी की मांग करते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की. वहीं बच्ची के पिता पर दहेज की मांग को लेकर उत्पीड़न और क्रूरता करने का आरोप लगाया गया है. उसके खिलाफ दहेज हत्या की एफआईआर दर्ज कराई गई है.

अधिवक्ता ने तर्क दिया कि नाबालिग बच्ची की मां की अनुपस्थिति में उसके पिता उसके नैसर्गिक अभिभावक हैं. यह तर्क दिया गया कि नाना के पास बच्ची की अभिरक्षा अवैध है. विपक्षियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने यह कहकर उक्त दावे का प्रतिवाद किया है कि नाबालिग लड़की उस समय से अपने नाना के पास है. जब से उसकी मां को दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था. प्रताड़ना और क्रूरता की वजह से उसकी मां की मौत होने के बाद, नाबालिग बच्ची अपने नाना की देखभाल और अभिरक्षा में है. इसे किसी भी तरह से अवैध नहीं ठहराया जा सकता है.

यह भी बताया गया कि दहेज हत्या की एफआईआर में दादा-दादी और पिता आरोपित हैं और वे आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे हैं. ऐसे में याचियों को बच्ची की अभिरक्षा प्रदान करना पूरी तरह से नाबालिग बच्ची के हित के खिलाफ होगा.

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कोर्ट ने माना कि बंदी प्रत्यक्षीकरण की एक रिट में संरक्षकता या अभिरक्षा के दावे को पूर्ण अधिकार नहीं माना जा सकता है और बच्चे के हित में जो प्रतीत होगा. वहीं किया जाएगा. ऐसे मामलों में, यह स्वतंत्रता का नहीं बल्कि पालन-पोषण और देखभाल का सवाल है. बच्चे के कल्याण के साथ संरक्षण से संबंधित प्रतिस्पर्धी अधिकारों की जांच करते समय, विचार के लिए प्रमुख परीक्षा होगी. बच्चे के कल्याण और हित के लिए सबसे अच्छा क्या होगा? कस्टडी से संबंधित मामलों का फैसला करते समय बच्चे का हित पक्षकारों के कानूनी अधिकारों पर प्रबल होगा.

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