उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

हाईकोर्ट का आदेश, उपद्रवियों के पोस्टर हटाए यूपी सरकार - हाईकोर्ट की खबर

etv bharat
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उपद्रवियों के फोटोग्राफ हटाने का दिया आदेश.

By

Published : Mar 9, 2020, 2:12 PM IST

Updated : Mar 10, 2020, 4:33 AM IST

14:09 March 09

चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने दिया आदेश

प्रयागराज: हाईकोर्ट ने लखनऊ में सीएए हिंसा के दौरान संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के सड़क किनारे लगे होर्डिंग तत्काल हटाने का आदेश दिया है. 16 मार्च को अनुपालन रिपोर्ट के साथ हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि बिना कानूनी उपबंध के नुकसान वसूली के लिए पोस्टर में फोटो लगाना अवैध है. बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाये किसी का फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना निजता के अधिकार का हनन है. 

हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार लोगों की निजता एवं जीवन और स्वतंत्रता के मूल अधिकारों पर अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं कर सकती. जब लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन हो रहा हो, तो कोर्ट पीड़ित के आने का इंतजार नहीं कर सकती. कोर्ट ने कहा कि लोक प्राधिकारियों की लापरवाही से मूल अधिकारों का उल्लंघन कर कानूनी क्षति पहुंचाई जा रही हो, तो कोर्ट को हस्तक्षेप करने का अधिकार है. लोगों का पर्सनल डाटा सार्वजनिक करना प्रशासनिक शक्ति का दुरुपयोग है. प्रदेश में गंभीर अपराध के लाखों आरोपी हैं. सरकार ने कुछ चुने हुए लोगों की फोटो व पर्सनल डाटा सड़क किनारे पोस्टर पर लगाकर अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल किया है.  

कोर्ट ने लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर को सड़क किनारे लगे पोस्टर बैनर तत्काल प्रभाव से हटाने का निर्देश दिया है. साथ ही राज्य सरकार को बिना कानूनी प्राधिकार के सड़क किनारे किसी की निजता के अधिकार का उल्लंघन करने पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने डीएम लखनऊ और महानिबंधक हाईकोर्ट से 16 मार्च को अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है और कहा है कि संतोषजनक अनुपालन रिपोर्ट पर जनहित याचिका की कार्रवाई ठप हो जाएगी. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने दिया है. इससे पहले रविवार को स्पेशल बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की थी और फैसला सुरक्षित कर लिया था. 

बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लखनऊ में विरोध प्रदर्शन के दौरान निजी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों की फोटो सार्वजनिक स्थान पर लगा दी गई थी. 6-7 मार्च के अखबारों में छपी खबर को संज्ञान में लेते हुए मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर ने जनहित याचिका कायम कर कोर्ट में पेश करने का महानिबंधक कार्यालय को आदेश दिया. याचिका पर सुनवाई करते हुए रविवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि ऐसा कौन सा कानून है, जिससे सरकार को सार्वजनिक स्थान पर फोटो चस्पा करने का अधिकार मिल जाता है. पीठ ने इसे बेहद अन्यायपूर्ण करार देते हुए कहा था कि यह लोगों की स्वतंत्रता पर पूरी तरह से अतिक्रमण है.  

महाधिवक्ता राघवेन्द्र सिंह ने याचिका की सुनवाई के अधिकार क्षेत्र एवं ऐसे मामलों में जनहित याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की. उन्होंने कहा कि सार्वजनिक व निजी संपत्ति को प्रदर्शन के दौरान नुकसान पहुंचाने वालों को हतोत्साहित करने के लिए यह कार्रवाई की गई है. महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने जनहित याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि जिनके फोटो लगाए गए हैं, वह कानून का उल्लंघन करने वाले लोग हैं. इन्हें पूरी जांच और प्रक्रिया अपनाने के बाद अदालत से नोटिस भी भेजा गया था, मगर कोई भी सामने नहीं आ रहा है, इसलिए सार्वजनिक स्थान पर इनके फोटो चस्पा किए गए हैं. 

हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि ऐसा कानून नहीं है, जिससे फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित किया जाए, लेकिन कोर्ट से लोक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के ऐसे मामलों में हस्तक्षेप से बचने की अपील की और कहा कि पीड़ित लोग कोर्ट आ सकते हैं. कोर्ट ने महाधिवक्ता की हर आपत्ति का जवाब दिया और कहा मेरठ मे भी ऐसा किया गया है, तो कोर्ट को क्षेत्राधिकार है.  

कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार, मानव गरिमा का मूल अधिकार है. यह जनतंत्र का मूल है. संविधान में तीनों संस्थाओं कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका को स्वतंत्र अधिकार हैं. किसी को एक दूसरे के अधिकारों के अतिक्रमण का अधिकार नहीं है. चेक एण्ड बैलेन्स का सिद्धांत है. सामान्यतया कोर्ट में आने पर ही हस्तक्षेप का कोर्ट को अधिकार होता है, किन्तु जहां अधिकारियों की लापरवाही से मूल अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो, कोर्ट किसी के आने का इंतजार नहीं कर सकती. निजता अधिकार के हनन के मामलों में संवैधानिक कोर्ट को नोटिस में लेकर हस्तक्षेप करने का अधिकार है.  

कोर्ट ने कहा कि 50 लोगों का फोटो व पर्सनल डाटा सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना प्रशासन के लिए शर्मनाक है. मूल अधिकारों का संयुक्त राष्ट्र संघ की मान्यता है. कोर्ट ने कहा कि सरकार कानूनी कार्रवाई कर सकती है, किन्तु उसे मनमानी करने का अधिकार नहीं है. सरकार यह नहीं बता सकी कि किस कानून के तहत कार्रवाई की गई है.

Last Updated : Mar 10, 2020, 4:33 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details