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हाईकोर्ट का अहम फैसला, नाबालिग को भी उसकी मर्जी के खिलाफ संरक्षण गृह में नहीं रख सकते - High Court canceled rape case

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दुष्कर्म और अपहरण मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि नाबालिग को भी उसकी इच्छा के संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता. नाबालिग लड़की ने उसके प्रेमी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. इसके बाद पीड़िता को संरक्षण गृह में रखा गया है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 7, 2023, 10:20 PM IST

Updated : Dec 8, 2023, 9:50 AM IST

प्रयागराजःइलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि नाबालिग को भी उसकी इच्छा के विरुद्ध राजकीय बालिका संरक्षण गृह या किसी भी अन्य संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता है. कोर्ट ने राजकीय बालिका संरक्षण गृह में रखी गई पीड़िता को उसके पति के साथ जाने की अनुमति दे दी है. साथ ही पति के खिलाफ दर्ज अपहरण और दुष्कर्म के मुकदमे को रद्द कर दिया है. जालौन के मनोज कुमार उर्फ मोनू कटारिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने दिया है.

मर्जी से शादी करने के बाद भी दर्ज कराया युवक पर मुकदमाःमामले के अनुसार, मोनू कटारिया ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर उसके खिलाफ उरई में दर्ज अपहरण, दुष्कर्म और पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमे में दाखिल चार्जशीट को रद्द करने की मांग की थी. याची के अधिवक्ता का कहना था कि उसकी प्रेमिका की मां ने उसके खिलाफ यह मुकदमा दर्ज कराया है. जबकि वास्तविकता यह है कि लड़की के साथ उसका प्रेम संबंध था और दोनों अपनी मर्जी से शादी कर ली. लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में प्रेमिका की आयु 16 वर्ष बताए जाने के आधार पर उसे राजकीय बालिका संरक्षण गृह भेज दिया गया. इसके साथ ही मोनू को इस मामले में जेल जाना पड़ा. बाद में हाई कोर्ट से उसकी जमानत हो गई थी.

पीड़िता की मां ने उसकी कस्टडी लेने से कर दिया था इंकारःअधिवक्ता ने कहा कि मुकदमा दर्ज कराने के बावजूद पीड़िता की मां ने उसकी कस्टडी लेने से इनकार कर दिया जिसकी वजह से उसे संरक्षण गृह भेजना पड़ा. जहां उसने एक बच्चे को जन्म भी दिया है. पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए अपने बयान में अपनी आयु स्पष्ट रूप से 19 वर्ष बताई है. याची पीड़िता का पति होने के कारण उसकी कस्टडी लेने के लिए अधिकृत है, इसलिए कस्टडी में सुपुर्द किया जाए.

दुष्कर्म के आरोप में दर्ज़ मुकदमा रद्दःकोर्ट ने इस तरह के कई मामलों में हाई कोर्ट द्वारा पारित निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि इस स्थिति में यदि पीड़िता नाबालिग भी है तब भी उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता है. यह तय कानून है कि आयु निर्धारण के मामले में मेडिकल रिपोर्ट से 2 वर्ष अधिक या कम माना जा सकता है. इस अदालत की राय में पीड़िता की आयु 18 वर्ष से अधिक की है. पीड़िता ने एक बच्चे को भी जन्म दिया है. मां और बच्चा दोनों स्वस्थ है. इसलिए कोर्ट ने पीड़िता की कस्टडी उसके पति मोनू कटारिया को सौंपने का निर्देश देते हुए उसके खिलाफ चल रहे मुकदमे की कार्रवाई को रद्द कर दिया है.

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Last Updated : Dec 8, 2023, 9:50 AM IST

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