प्रयागराज: बिजली चोरी करने के आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने के 18 साल बाद भी अदालत उस पर आरोप तय नहीं कर सकी. इस स्थिति को देखते हुए हाईकोर्ट ने मुकदमे की कार्यवाही को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि मुकदमे का त्वरित विचारण अभियुक्त का मौलिक अधिकार है.
Allahabad High Court ने कहा कि अभियोजन द्वारा प्राथमिकी की मूल प्रति अदालत में प्रस्तुत न कर पाने और अदालत में आरोप तय न होने से याची लगातार इतने वर्षों तक मुकदमे की पीड़ा सहता रहा है. अभियुक्त के मौलिक अधिकार का हनन हुआ. ऐसे में मुकदमे की कार्रवाई को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है. शाहजहांपुर के मदन मोहन सक्सेना की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश (Allahabad High Court Order) न्यायमूर्ति समीर जैन ने दिया.
याची मदन मोहन के खिलाफ शाहजहांपुर की एसीजेएम कोर्ट में वर्ष 2003 से बिजली चोरी का मुकदमा लंबित है. मदन मोहन पर बिजली चोरी का आरोप है. इसकी प्राथमिकी विभाग की ओर से दर्ज कराई गई थी. इस मामले में 1 दिसंबर 2003 को उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया. न्यायालय ने 22 जनवरी 2004 को आरोप पत्र पर संज्ञान भी ले लिया तथा अभियुक्त को सम्मन जारी किया गया. याची मदन मोहन नियत तिथि पर अदालत में उपस्थित हुआ. कोर्ट ने अभियोजन से FIR की मूल प्रति प्रस्तुत करने के लिए कहा साथ ही मामले में आरोप तय करने के लिए तिथि निश्चित की.
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