प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अभियुक्तों के आपराधिक इतिहास की जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध कराई जानी चाहिए. हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह व महानिदेशक पुलिस को निर्देश दिया है कि वह स्वयं इस मामले को देखें और आवश्यक कदम उठाएं. कोर्ट ने कहा है कि दोनों अधिकारी अपने स्तर पर यह सुनिश्चित करें कि किसी भी अभियुक्त का आपराधिक इतिहास एक क्लिक पर उपलब्ध हो जाए. जो व्यक्ति अदालत में सरकार की ओर से पैरोकारी कार्य कर रहा है, उसकी जवाबदेही तय की जाए, ताकि किसी अभियुक्त के बारे में जानकारी छुपा करके उसे अनावश्यक लाभ न पहुंचाया जा सके.
पूर्व एमपी बालकुमार पटेल की अग्रिम जमानत अर्जी और धारा 482 सीआरपीसी के तहत दाखिल याचिका खारिज करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति समित गोपाल ने दिया. कोर्ट ने अभियुक्त बालकुमार पटेल के मामले में बांदा के थाना कोतवाली के सब इंस्पेक्टर द्वारा प्रस्तुत यह जानकारी कि अभियुक्त के खिलाफ कोई आपराधिक इतिहास नहीं है को गंभीरता से लेते हुए उक्त आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि सब इंस्पेक्टर कोतवाली बांदा ने अपने हलफनामे में कहा है कि अभियुक्त का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है. जबकि शिकायतकर्ता की ओर से बताया गया कि अभियुक्त का लंबा आपराधिक इतिहास है.
कोर्ट ने जब एसपी बांदा से इस मामले में व्यक्तिगत हलफनामा मांगा तो उन्होंने बताया कि अभियुक्त बालकुमार के खिलाफ 27 मुकदमों की क्रिमिनल हिस्ट्री है. कोर्ट ने कहा कि जिस प्रकार से यह मामला सामने आया है वह एक चिंता का विषय है क्योंकि ऐसा भी मुकदमा हो सकता है जहां शिकायतकर्ता कोर्ट में न आए और अदालत को राज्य सरकार के हलफनामे को ही सच मानकर निर्णय देना होगा. इस स्थिति में अभियुक्त दर्ज मुकदमों की वास्तविक जानकारी अदालत को नहीं मिल सकेगी. आज के दौर में जब हर प्रकार की सूचनाएं एक क्लिक पर उपलब्ध हैं तो यह नहीं कहा जा सकता कि एक व्यक्ति का आपराधिक इतिहास पुलिस द्वारा नहीं जुटाया जा सका.
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मामले के अनुसार, पूर्व एमपी बालकुमार पटेल के खिलाफ पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार रमाकांत त्रिपाठी ने थाना कोतवाली नगर बांदा में धोखाधड़ी के आरोप में आईपीसी की धारा 419, 420 और 406 के तहत मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस की चार्जशीट पर 2 नवंबर 2021 को अदालत ने इस मामले में संज्ञान लिया. आरोपी बालकुमार पटेल की ओर से इस मामले में गिरफ्तारी पर रोक के लिए अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की गई थी. साथ ही साथ कोर्ट द्वारा संज्ञान लिए जाने के आदेश को धारा 482 सीआरपीसी के तहत भी चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने उक्त दोनों याचिकाएं खारिज कर दीं.