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सड़क पर उतरे इलाहाबाद हाइकोर्ट के वकील, न्यायिक काम ठप - हाइकोर्ट बार

राज्य शिक्षा सेवा अधिकरण के मुद्दे पर इलाहाबाद हाइकोर्ट के वकीलों ने शुक्रवार को भी कामकाज ठप रखा. वकीलों ने एकजुट होकर सड़क पर प्रदर्शन किया और अपनी मांग पूरी न होने तक आंदोलन जारी रखने की चेतावनी दी.

इलाहाबाद हाइकोर्ट (फाइल फोटो).

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Published : Aug 16, 2019, 11:56 PM IST

इलाहाबाद: राज्य शिक्षा सेवा अधिकरण के मुद्दे को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकीलों का आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है. कोर्ट के वकील शुक्रवार को न्यायिक कार्य से विरत होकर सड़कों पर उतर आए और अधिकरण को प्रयागराज में स्थापित करने की मांग दोहराई. वकीलों ने हाईकोर्ट अंबेडकर चौराहे से सिविल लाइंस सुभाष चौक तक जुलूस निकालकर अपनी आवाज बुलंद की. आंदोलनकारियों ने बैठक कर शनिवार को भी कामकाज ठप रखने का फैसला किया. साथ ही आंदोलन को बड़ा रूप देने के लिए विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े संगठनों के साथ रणनीति तैयार करने पर सहमति जताई गई.

अपनी मांग पर अड़े हाइकोर्ट के वकील

हाईकोर्ट बार के संयुक्त सचिव प्रेस सर्वेश दुबे के अनुसार अध्यक्ष राकेश पांडे बबुआ के नेतृत्व में जुलूस निकाला गया. जुलूस में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन वीसी मिश्र, पूर्व अध्यक्ष आई के चतुर्वेदी, यूपी बार कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष अमरेंद्र नाथ सिंह, महासचिव जेबी सिंह, पूर्व महासचिव ओ पी सिंह और हाईकोर्ट बार के पूर्व पदाधिकारी अखिलेश मिश्र गांधी समेत अन्य पदाधिकारी व गवर्निंग काउंसिल सदस्य शामिल रहे. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य पूर्व विधायक अनुग्रह नारायण सिंह ने प्रयागराज में अधिकरण स्थापित करने का समर्थन करते हुए कहा कि टीएमएपीई केस में सुप्रीम कोर्ट के 11 जजो की संविधान पीठ के अनुसार चीफ जस्टिस के परामर्श से ही अधिकरण गठित होना चाहिए. राज्य सरकार ने शिक्षा सेवा अधिकरण गठन पर चीफ जस्टिस की सहमति न लेकर कोर्ट के फैसले का उल्लंघन किया है. उन्होंने राष्ट्रपति से बिल आपत्ति के साथ वापस करने की मांग की है.

वकीलों के आंदोलन से कामकाज ठप

पिछले चार दिन से हाईकोर्ट के वकीलों की हड़ताल से न्यायिक कार्य बाधित होने के चलते सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है. न्यायालय परिसर के आसपास के दुकानदारों और खोमचे वालों की रोजी पर संकट खड़ा हो गया है. हाई कोर्ट में प्रतिदिन 2 हजार नए मुकदमों की सुनवाई नहीं हो पा रही है. साथ ही राज्य सरकार को भी सरकारी मुकदमों की पैरवी में खर्च होने वाले करोड़ों रुपये की चपत लग रही है. मुकदमों का दाखिला भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है. जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की जमानत अर्जियों की सुनवाई नहीं हो पा रही है.

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