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पुलिस थानों से हटाएं टॉप टेन अपराधियों के बैनर: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया है कि वह पुलिस थानों से टॉप टेन अपराधियों के बारे में सूचना देने वाले बैनर हटा लें. कोर्ट ने डीजीपी को इस बाबत सभी थानों को सकुर्लर जारी करने का भी निर्देश दिया है. कोर्ट का मानना है कि थानों के बाहर अपराधियों के बारे में सूचनाएं सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करना अनावश्यक है और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करने वाला है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Jan 29, 2021, 10:40 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजीपी उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया है कि वह पुलिस थानों से टॉप टेन अपराधियों के बारे में सूचना देने वाले बैनर हटा लें. इन बैनरों में अपराधियों के नाम और पहचान के साथ ही उनके आपराधिक ‌इतिहास की भी जानकारी दी गई है.

कोर्ट ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है. हालांकि अदालत ने निगरानी के लिए अपराधियों की सूची तैयार करने को गलत नहीं माना है. कोर्ट ने डीजीपी को इस बाबत सभी थानों को सकुर्लर जारी करने का भी निर्देश दिया है. कोर्ट का मानना है कि थानों के बाहर अपराधियों के बारे में सूचनाएं सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करना अनावश्यक है और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करने वाला है. ऐसा करना मानवीय गरिमा के विपरीत है. जीशान उर्फ जानू, बलवीर सिंह यादव और दूधनाथ सिंह की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की पीठ ने दिया है.

याचीगण के नाम टॉप टेन अपराधियों की सूची में प्रयागराज और कानपुर में थानों के बाहर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किए हैं. इस पर आपत्ति करते हुए याचिका दाखिल की गई थी. कोर्ट ने कहा ‌कि न तो राजनीतिक और न ही सामाजिक रूप से किसी अपराधी का नाम थानों के बाहर सार्वजिनक रूप से बैनर लगाकर प्रदर्शित करने की आवश्यकता है. जब तक कि उसके खिलाफ धारा 82 सीआरपीसी (कुर्की का नोटिस) के तहत आदेश न जारी किया गया ‌हो. तब तक किसी का नाम सार्वजनिक स्थान पर प्रदर्शित करना व्यक्ति की निजता और मानवीय गरिमा के विपरीत है.

कोर्ट ने कहा कि पुलिस द्वारा अपराध की रोकथाम और निगरानी के लिए टॉप टेन अपराधियों की सूची तैयार करने में कुछ भी गलत नहीं है. डीजीपी ने प्रदेश के सभी पुलिस थानों को सकुर्लर जारी कर अपने यहां के टॉप टेन अपराधियों की सूची तैयार करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि यह सर्कुलर वैध है. इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इस सर्कुलर में ऐसा कुछ नहीं है, जिससे पुलिस को किसी अपराधी के बारे में सूचना सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने का अधिकार मिल जाता है.

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