प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए बेहद महत्वपूर्ण आदेश दिया है. सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बालिग महिला को अपनी पसंद और शर्तों पर पति के साथ बिना किसी बाधा के जीने का अधिकार है. सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सीजेएम एटा और बाल कल्याण समिति(सी डब्ल्यू सी) के रवैये पर तीखी टिप्पणी की है और कहा कि इनके कार्य से कानूनी उपबंधों को समझने की इनकी क्षमता में कमी दिखायी दी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की सुनवाई
दरअसल सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में शिखा और अन्य की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर न्यायमूर्ति पंकज नकवी तथा न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने सुनवाई की. सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पुलिस को दोनों पति-पत्नी की सुरक्षा करने का आदेश दिया है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने याची के पति के खिलाफ अपहरण के आरोप में दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है.
कोर्ट ने कहा है कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 95 से स्पष्ट है कि यदि स्कूल का जन्म प्रमाणपत्र उपलब्ध है तो अन्य साक्ष्य द्वितीय माने जायेंगे. स्कूल प्रमाणपत्र में याची की जन्मतिथि 4 अक्टूबर 1999 दर्ज है. वह बालिग है. इसके बावजूद सीजेएम एटा ने कानूनी उपबंधों के विपरीत याची की अभिरक्षा उसके माता-पिता को सौंप दी. इस मामले में कोर्ट ने कहा कि याची बालिग है. वह अपनी मर्जी से जहां चाहे जा सकती है.