प्रयागराजःइलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब भाषा के आबाध उपयोग का लाइसेंस नहीं है. कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया वैश्विक प्लेटफार्म है. यह लोगों के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग करने का महत्वपूर्ण साधन बन चुका है. मगर, अभिव्यक्ति की आजादी विशेष जिम्मेदारी और कर्तव्यों के साथ मिलती है.
कोर्ट का कहना है कि यह नागरिकों को गैर जिम्मेदाराना रूप से बोलने की स्वतंत्रता नहीं देती है, न ही यह भाषा के हर संभव आबाध उपयोग की आजादी देती है. मां दुर्गा के संबंध में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले जौनपुर के शिव कुमार भारती की याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने टिप्पणी की.
याची ने अपने व्हाट्सएप से कई व्हाट्सएप ग्रुप पर मां दुर्गा के संबंध में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. इससे हिंदुओं की भावनाएं आहत हुईं और अखंड प्रताप सिंह ने 8 अक्टूबर 2021 को जौनपुर के बदलापुर थाना में याची के खिलाफ आईपीसी की धारा 295 ए तथा आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत मुकदमा दर्ज कराया.
जांच अधिकारी ने विवेचना के बाद उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी, जिस पर संज्ञान लेते हुए सिविल जज वरिष्ठ श्रेणी जौनपुर ने याची को समन जारी कर तलब किया. इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. याची का कहना था कि वह निर्दोष है, उसके व्हाट्सएप पर मैसेज आया था. मगर, उसने किसी को इसे फॉरवर्ड नहीं किया, उसे झूठा फंसाया गया है. इस मामले में धारा 67 आईटी एक्ट का कोई तत्व नहीं है.
जबकि अपर शासकीय अधिवक्ता का कहना था कि विवेचक ने कई लोगों के बयान दर्ज किए हैं, जिससे पता चलता है याची ने मैसेज फॉरवर्ड किए हैं. उसके जब्त किए गए मोबाइल की चैट के रिकॉर्ड से भी यह साबित होता है कि उसने आपत्तिजनक मैसेज कई ग्रुप में फॉरवर्ड किया. इतना ही नहीं याची ने अपनी गलती मानते हुए माफी भी मांगी है.
कोर्ट का कहना था कि याची के खिलाफ उपलब्ध साक्ष्यों और प्राथमिकी में लगाए गए आरोप से उसके खिलाफ संज्ञेय अपराध बनता है. विवेचक ने याची के विरुद्ध चार्जसीट में विश्वसनीय तथ्य प्रस्तुत किए हैं. रिकॉर्ड से पता चलता है कि याची ने स्वीकार किया है कि उसने मोबाइल पर मैसेज आया था जिसे उसने फॉरवर्ड किया है, उसने अपनी गलती स्वीकार की है. कोर्ट ने कहा कि सिविल जज के सम्मन आदेश में कोई खामी नहीं है. याचिका खारिज कर दी.
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