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सिविल कोर्ट स्टाफ भर्ती में अनियमितता मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

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Published : Sep 18, 2019, 3:16 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र सिविल कोर्ट स्टाफ संयुक्त भर्ती परीक्षा 2016-17 में अनियमितता को लेकर दाखिल याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र सिविल कोर्ट स्टाफ संयुक्त भर्ती परीक्षा 2016-17 में अनियमितता को लेकर दाखिल याचिका पर राज्य सरकार और अन्य विपक्षियों से जानकारी मांगी है. याचिका की सुनवाई 20 सितंबर को होगी.


यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने शशि मिश्र की याचिका पर दिया है. याची अधिवक्ता एमए सिद्दीकी का कहना है कि याची को कट ऑफ मार्क से अधिक अंक मिलने के बावजूद चयनित नहीं किया गया. याची को 160.54 अंक मिले. कट ऑफ मार्क 159.24 है. महिला श्रेणी में कट ऑफ मार्क 128.62 है और याची ने महिला श्रेणी में 159.24 अंक प्राप्त किये हैं. परिणाम श्रेणीवार और उपश्रेणी वार घोषित किया गया.


हाईकोर्ट ने मांगी नर्सिंग होम के खिलाफ की गई कार्रवाई की रिपोर्ट-
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज के नर्सिंग होम के खिलाफ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी नोटिस पर की गयी कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है. कोर्ट ने राज्य सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता जेएन मौर्या से 26 सितंबर तक कार्रवाई हलफनामा दाखिल करने को कहा है.

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बोर्ड ने शहर के कई नर्सिंग होमों को मेडिकल कचरे के निस्तारण की व्यवस्था न करने पर उन्हें मुआवजे का भुगतान करने की नोटिस जारी की है. बोर्ड के अधिवक्ता डॉ. एचएन त्रिपाठी ने कोर्ट को बताया कि लापरवाह अस्पतालों को नोटिस जारी की गयी है.


यह आदेश न्यायमूर्ति पीके एस बघेल और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खण्डपीठ ने वैशाली सिंह और अन्य की जनहित याचिका पर दिया है. भारत सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी ने कोर्ट को बताया कि केंद्रीय स्वास्थ्य योजना के अस्पतालों के बायोबेस्ट बोर्ड के लाइसेंस दिया जा रहा है. कोर्ट ने हलफनामा दाखिल करने का समय दिया है. याची का कहना है कि अस्पतालों, नर्सिंग होमों का मेडिकल कचरा निस्तारण की सही व्यवस्था न होने से कचरे से जानलेवा घातक बीमारियां फैल रही हैं. कानून के तहत इनके निस्तारण की व्यवस्था करने की राज्य सरकार की जवाबदेही है, जो अपना दायित्व नहीं निभा रही है.


बोर्ड नोटिस जारी कर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. बोर्ड का कहना है कि कार्रवाई का अधिकार राज्य सरकार को है. इस पर कोर्ट ने सरकार से 26 सितंबर तक कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है.

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