प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा के चीफ इंजीनियर रहे यादव सिंह की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका मंजूर करते हुए नई दिल्ली के एसटीएफ थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और आईपीसी की धारा 120 बी के तहत दर्ज मामले में निरुद्धि को अवैध मानते हुए उन्हें इस मुकदमे में जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद कहा कि स्पेशल जज सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को समझने में गलती की है. लॉकडाउन के दौरान ऐसी परिस्थितियां नहीं थीं कि चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकती थी. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की खंडपीठ ने दिया है.
सीबीआई के स्पेशल जज ने खारिज कर दी थी अपील
यादव सिंह के खिलाफ नई दिल्ली के एसटीएफ थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम व आईपीसी की धारा 120 बी के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई. इस मामले में सीबीआई ने यादव सिंह को 10 फरवरी 2020 को गिरफ्तार किया था. उसके बाद उसे 11 फरवरी को स्पेशल कोर्ट सीबीआई में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. यादव सिंह की ओर से कहा गया कि सीबीआई ने निर्धारित अवधि के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं की. इस पर उसने 12 अप्रैल को गाजियाबाद के जिला जज को ई-मेल से प्रार्थना पत्र भेजकर जमानत पर रिहा करने की मांग की. जिला जज ने वह अर्जी 16 अप्रैल को स्पेशल जज सीबीआई को फॉरवर्ड कर दी. स्पेशल जज ने 17 अप्रैल को उसकी अर्जी खारिज कर दी.
विशेष न्यायाधीश सीबीआई ने यादव सिंह की जमानत नामंजूर करते हुए कहा था कि कोविड-19 संक्रमण से हुए लॉकडाउन के कारण सीबीआई 60 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकी. सुप्रीम कोर्ट ने भी 23 मार्च के आदेश में सभी प्रकार के मामलों में मियाद बढ़ा दी है. इसलिए सीबीआई को चार्जशीट दाखिल करने में जो विलंब हुआ उस अवधि की गणना नहीं की जाएगी.