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नियमित विभागीय कार्रवाई के बिना पुलिसकर्मियों का निलंबन सही नहीं : हाईकोर्ट

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Published : Apr 6, 2022, 9:07 PM IST

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नियमित विभागीय जांच बैठाए बिना सिपाहियों को निलंबित करने के आदेश पर रोक लगा दी है. राज्य सरकार व पुलिस बोर्ड से जवाब मांगा है. याचिका में निलंबन आदेश को चुनौती दी गई है.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नियमित विभागीय जांच बैठाए बगैर सिपाहियों को निलंबित करने के आदेश पर रोक लगा दी है. राज्य सरकार व पुलिस बोर्ड से जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव जोशी ने सिपाही अतुल कुमार नागर और सुमित शर्मा द्वारा दायर अलग-अलग याचिकाओं पर दिया है. याचिका में निलंबन आदेश को चुनौती दी है.

याची के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम व अतिप्रिया गौतम ने कोर्ट को बताया कि याचीगण साइबर क्राइम थाना, जनपद गौतमबुध नगर में कार्यरत थे. उनके विरुद्ध शिकायत कर्ता मंजू चौहान ने एफआईआर दर्ज करायी. प्रभारी निरीक्षक साइबर क्राइम थाना सेक्टर 36, नोएडा, गौतम बुद्ध नगर की रिपोर्ट में कहा गया कि पैसा लेकर आरोपियों को छोड़ने का कृत्य न केवल गंभीर और दुराचरण की श्रेणी में आता है. पुलिस विभाग की छवि को भी धूमिल करता है. महकमे को क्षति पहुंची है.

शिकायतकर्ता के अनुसार 5 लोग सादे कपड़े में आए और उन्होंने अपने आप को नोएडा साइबर थाने की पुलिस बताया और उसकी कंपनी कार्यालय से वसीम, परवेज व सुहेल को पूछताछ के बहाने पकड़कर साथ ले गए. 2 घंटे बाद उन्होंने उसके मोबाइल व्हाट्सएप नंबर पर परवेज के व्हाट्सएप नंबर से कॉल करके तीनों को छोड़ने के बदले 7 लाख मांगे.

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पांच लाख में सौदा तय हो गया. वादिनी का आरोप था कि उसने 2 लाख इन लोगों को दे दिए तथा शेष 3 लाख अगले दिन इंतजाम करके देने को कहा. इस पर सिपाहियों ने तीनों आदमियों को छोड़ दिया. जानकारी होने पर पुलिस अधीक्षक साइबर क्राइम ने सिपाहियों को निलंबित कर दिया.

सीनियर एडवोकेट विजय गौतम ने कहा कि निलंबन आदेश जारी करने के बाद अपर पुलिस महानिदेशक साइबर क्राइम लखनऊ के आदेश 2 सितंबर 2021 के तहत डिप्टी एसपी साइबर क्राइम लखनऊ को प्रारंभिक जांच सौंपी गयी. न ही सिपाहियों को अभी तक चार्जशीट दी गई है और न ही नियमित विभागीय कार्रवाई शुरू की गई है.

कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि याचीगणों के खिलाफ प्रारंभिक जांच चल रही है. कोर्ट ने कहा कि नियमित जांच बैठाए बगैर निलंबित नहीं किया जा सकता. निलंबन आदेश विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के विरुद्ध है. कोर्ट ने याचिका पर सरकारी वकील से 4 सप्ताह में जवाब मांगा है.

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