प्रयागराजः क्या प्राइवेट शिक्षण लोक दायित्व निभाते हुए राज्य के कार्य कर रहे हैं और उनके खिलाफ याचिका दायर की जा सकती है. इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्णपीठ ने स्थिति साफ कर दी है. पूर्णपीठ ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि लोक दायित्व और व्यक्तिगत दायित्व के बीच विभाजन की एक पतली रेखा है. जिसका निर्धारण कार्य की प्रकृति पर निर्भर करेगा. लोक और व्यक्तिगत कार्य की कसौटी के लिए दो तत्व जरूरी है. पहला व्यक्ति या प्राधिकारी लोक कर्तव्य या काम कर रहे हों. दूसरा कार्य लोक कानून के दायरे में किया जा रहा हो, न कि सामान्य कानून के.
हाईकोर्ट ने कहा कि कोई कानूनी प्राधिकारी है, इतने मात्र से उसके खिलाफ याचिका पोषणीय नहीं हो जाती है. इसी तरह पक्षों के बीच संविदा मामले में भी याचिका दायर नहीं की जा सकती है. भले ही वे सरकारी प्राधिकारी हों. याचिका तभी पोषणीय होगी जब लोक कानून के तहत लोक कार्य या दायित्व निभाया जा रहा हो.
कोर्ट ने कहा कि अगर सामान्य कानून के तहत लोक दायित्व निभाया जा रहा हो, तो याचिका जारी नहीं होगी. याचिका जारी करने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति या प्राधिकारी लोक दायित्व लोक कानून के तहत निभा रहा हो. इसी फैसले के साथ पूर्णपीठ ने प्रकरण एकलपीठ को निर्णय के लिए वापस भेज दिया है.