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11 साल बाद अध्यापक को बर्खास्त करने के आदेश पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक - court order

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षा निदेशक माध्यमिक उप्र लखनऊ की ओर से महाराजगंज के अध्यापक गोविंद प्रसाद द्विवेदी की सेवा समाप्ति आदेश पर रोक लगा दी है.

11 साल बाद अध्यापक को बर्खास्त करने के आदेश पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक
11 साल बाद अध्यापक को बर्खास्त करने के आदेश पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक

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Published : Apr 15, 2022, 10:01 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षा निदेशक माध्यमिक उप्र लखनऊ की ओर से महाराजगंज के अध्यापक गोविंद प्रसाद द्विवेदी की सेवा समाप्ति आदेश पर रोक लगा दी है. याची अध्यापक को कार्य करने देने तथा वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया है तथा राज्य सरकार सहित विपक्षियों से चार हफ्ते में जवाब मांगा है. याचिका की सुनवाई जुलाई में होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने गोविंद प्रसाद द्विवेदी की याचिका पर दिया है.

याची का कहना है कि उसे नियुक्ति से 22 साल बाद बर्खास्त कर दिया गया है. राष्ट्रीय पत्राचार संस्थान कानपुर की शिक्षा अलंकार डिग्री को हाईकोर्ट ने विनोद कुमार उपाध्याय केस में 2011 में अमान्य घोषित कर इस डिग्री के आधार पर नियुक्त सभी अध्यापकों को हटाने का निर्देश दिया था. इसी आदेश के आधार पर 22 साल पहले नियुक्त याची की सेवा समाप्त कर दी गई. शिक्षा निदेशक ने वजह नहीं बताई कि सेवा समाप्त करने में 11 साल क्यों लगे.

सेवा समाप्ति आदेश 9 फरवरी 22 की वैधता को चुनौती दी गई है. याची का कहना है कि वह नियमित कर दिया गया है. उसे इंटर मीडिएट एक्ट की धारा 16ई (10) के तहत बर्खास्त किया गया है. आशा सक्सेना केस में पूर्णपीठ ने अपने फैसले में कहा है कि उचित समयावधि में आदेश दिया जाना चाहिए. शिक्षा निदेशक ने नहीं बताया कि समय रहते आदेश क्यों नहीं दिया.

मालूम हो कि शिक्षा अलंकार डिग्री को अमान्य घोषित करने के बाद बहुत से अध्यापक हटाये नहीं गये तो हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की गई. तत्कालीन सचिव ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया कि इस डिग्री से नियुक्त सभी अध्यापकों को हटा दिया गया है. इसके बाद अलीगढ़ के अरूण कुमार ने अवमानना याचिका दायर कर आरोप लगाया कि तीन अध्यापक अभी भी कार्यरत है. उन्हें भी हटा दिया गया.

अब हाईकोर्ट के आदेश के 11 साल बाद शिक्षा अलंकार डिग्री से नियुक्त याची को हटाने का आदेश दिया गया है. कोर्ट ने अनावश्यक देरी से पारित आदेश पर हस्तक्षेप करते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है.

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