उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

Pratapgarh News : अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही ऐतिहासिक रामपुर बावली, जानिए क्यों - ऐतिहासिक रामपुर बावली

प्रतापगढ़ में रामपुर बावली का जीर्णोंद्धार न होने से इसका अस्तित्व संकट में है. प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के कारण इसका उद्धार नहीं हो पा रहा है.

रामपुर बावली
रामपुर बावली

By

Published : Feb 6, 2023, 9:43 AM IST

प्रतापगढ़ में रामपुर बावली बदहाल

प्रतापगढ़: राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा पुरामहत्व की इमारतों को संरक्षण नहीं देने के कारण क्षेत्र में बनीं प्राचीन इमारतें अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं. इन्हीं प्राचीन इमारतों में प्रतापगढ़ जिले में स्थित एक पुरातन एवं ऐतिहासिक स्थान है रामपुर की 'बावली'. पुराने समय से अपनी ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध बावली की न तो अब किसी को जरूरत है और न ही किसी को इसकी तरफ ध्यान देने की आवश्यकता महसूस होती है. क्षेत्र की धरोहर के अस्तित्व पर संकट के बादल इस कदर छाए कि वर्तमान में यह बावली अपने जीर्णोंद्धार की प्यासी नजर आती है.

बावली की वजह से इस जगह का नाम रामपुर बावली पड़ा, जो जनपद का एक विधानसभा क्षेत्र भी है. यह बावली लालगंज तहसील मुख्यालय से 11 किलोमीटर दूर है. इसका निर्माण कालाकांकर रियासत के राजा हनुमंत सिंह ने लगभग 15-16वीं शताब्दी में कराया था. लेकिन, आलम यह है कि अब बावली की सीढ़ियां टूट रही हैं. समय के अंतराल और देख-रेख के अभाव के चलते यह बावली भी अपना वजूद खोती जा रही है और जर्जर अवस्था में आ गई है.

अंदर जाने का रास्ता

इतिहासकार बताते हैं कि बावली में बने गहरे कुएं के चारों तरफ 52 कमरे हैं. बावली का निर्माण लाखौरी ईंटों से हुआ था. यहां गर्मी के दिनों में कालाकांकर रियासत के राजा हनुमत सिंह आराम करने के लिए आते थे. बावली के बगल ही 4 किलोमीटर में सागर फैला हुआ है. स्थानील लोगों का कहना है कि बावली के कुएं की विशेषता है कि इसका पानी कभी खत्म नहीं होता है. भयंकर गर्मी में भी इसका पानी बिलकुल फ्रीज के पानी की तरह शीतल रहता है.

पिछले कई दशक से जब से पानी की समस्या दूर होती गई, वैसे प्राचीन बावली से ग्रामीणों की दूरियां बढ़ती गईं. आलम यह है कि रामपुर मुख्य बाजार में बावली होने के कारण अपना वजूद खो रही है. वहीं, रखरखाव नहीं होने के कारण बावली के आसपास अतिक्रमणकारियों ने अतिक्रमण तक कर लिया है. बावली तक पहुंचने के लिए फिलहाल कोई मार्ग नहीं बचा. बावली में बना कुआं सदियों पुराना है. ग्रामीणों का कहना है कुएं से कभी पानी खत्म नहीं होता. इसकी गहराई का कोई आंकड़ा नहीं है कि कितना गहरा है. प्राचीन काल में इसी कुएं का पानी लोग पीने और नहाने के लिए उपयोग करते थे. अब बहुत सालों से सफाई नहीं होने से पूरा पानी दूषित और गंदा हो गया है.

कमरों में भरा पानी

सरकार ने जल संरक्षण के लिए कई योजनाएं चलाईं. बावजूद इसके बावली का जीर्णोद्धार नहीं हो सका. जबकि, सरकार ने जल संग्रहण के लिए बावली व तालाबों के जीर्णोंद्धार के लिए लाखों रुपये खर्च किए. स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता के चलते भी इसका रख-रखाव नहीं हो पाया. स्थानीय लोगों की मांग है कि बावली का जीर्णोद्धार हो जाए तो एक बार फिर से रामपुर बावली की खोई हुई पहचान वापस मिल जाए. राजा दिनेश सिंह की पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह ने अपील की है कि बावली को बनवाया जाए. इस बावली की वजह से ही यह पूरा क्षेत्र जाना जाता है. लोगों का कहना है कि हिंदू-मुस्लिम सभी चाहते हैं कि इसका जीर्णोंद्धार हो. उनका कहना है कि यह एक पवित्र जगह है. इसका पुन: निर्माण होना चाहिए, जिससे खोया इतिहास और धरोहर को बचाया जा सके.

बावली को लेकर स्थानीय ग्रामीण राम अवतार ने बताया कि जगह बहुत पुरानी है. लेकिन, अब इसकी स्थिति बहुत खराब हो गई है. बावली में लगभग 52 कोठरी (कमरे) हैं. यह सदियों पुरानी है. उन्होंने कहा कि राजवाड़े की राजकुमारी रत्ना सिंह हैं. लेकिन, उन्होंने इसका कोई ध्यान नहीं रखा.

रामपुर बावली के अंदर का दृष्य

स्थानीय ग्रामीण मो. इरशाद ने बताया कि इसका इतिहास बहुत पुराना है. उनके पूर्वजों के मुताबिक, राजा हनुमंत सिंह ने इस बावली का निर्माण कराया था. यहां गर्मी के दिनों में राजा साबह बावली में आराम करने आते थे. उन्होंने बताया कि वे 15-20 कोठरी (कमरे) के बारे में जानते हैं, बाकी अन्य में हमेशा पानी भरा रहता है. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि इस बावली का जीर्णोंद्धार हो जाए, क्योंकि इसी बावली के नाम से यह रामपुर जाना जाता है. इसी बावली की वजह से इसे पहचान मिली.

वहीं स्थानीय ग्रामीण मोहम्मद अनवर ने कहा कि बावली का पानी उनकी जानकारी में अभी तक कभी सूखा नहीं. इसमें बहुत कोठरी हैं. बावली के आगे मुख्यद्वार से लेकर कुएं तक नीचे से सीड़ियां हैं, जहां से लोग जाते हैं. पहले लोग बावली का पानी पीते थे. उन्होंने कहा कि पहले यहां पर बड़ा मेला लगता था. दूर-दूर से श्रद्धालु से आते थे. लेकिन, अब हालत खराब होने पर अब यहां कोई नहीं आता है.

प्रतापगढ़ रामपुर बावली

बावली को लेकर इतिहासकार अशोक कुमार ओझा ने बताया कि रामपुर बावली के कारण ही उसे रामपुर बावली कहा जाता है, जो प्रतापगढ़ जनपद की ऐतिहासिक धरोहर है. इसका निर्माण बिसेन वंश के राजाओं ने 12वीं शताब्दी में जब वे गोरखपुर से कालाकांकर आते हैं तो 15-16वीं शताब्दी में कालाकांकर रियासत के राजा हनुमंत सिंह ने कराया था. उन्होंने बताया कि इस बावली के साथ जनपद के डेरवा की चित्रशाला का निर्माण उसी समय हुआ था.

इतिहासकार अशोक कुमार ओझा ने बताया कि यह बावली मुगल स्ट्रक्चर का एक अच्छा नमूना था, उसी के पैटर्न पर ये बना. बावली का निर्माण लखौरी ईंटों से हुआ. इसमें 52 कमरें हैं. उन्होंने बताया कि बावली में जल का ऐसा स्रोत है, जो कभी सूखता नहीं है. उन्होंने कहा कि ये प्रतापगढ़ की ऐसी विरासत है, जिस पर जनपद को गौरव हो सकता है और ये ऐतिहासिक धरोहर है. ऐसे में पुरातत्व विभाग का दायित्व बनता है कि वे इस पर काम करे और इसका जीर्णोमद्धार कराए, जिससे यह फिर अपने पूर्व के गौरव को प्राप्त कर सके.

यह भी पढ़ें:UP Global Investors Summit 2023 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मिला सर्वाधिक 56 प्रतिशत निवेश का प्रस्ताव


ABOUT THE AUTHOR

...view details