प्रतापगढ़: राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा पुरामहत्व की इमारतों को संरक्षण नहीं देने के कारण क्षेत्र में बनीं प्राचीन इमारतें अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं. इन्हीं प्राचीन इमारतों में प्रतापगढ़ जिले में स्थित एक पुरातन एवं ऐतिहासिक स्थान है रामपुर की 'बावली'. पुराने समय से अपनी ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध बावली की न तो अब किसी को जरूरत है और न ही किसी को इसकी तरफ ध्यान देने की आवश्यकता महसूस होती है. क्षेत्र की धरोहर के अस्तित्व पर संकट के बादल इस कदर छाए कि वर्तमान में यह बावली अपने जीर्णोंद्धार की प्यासी नजर आती है.
बावली की वजह से इस जगह का नाम रामपुर बावली पड़ा, जो जनपद का एक विधानसभा क्षेत्र भी है. यह बावली लालगंज तहसील मुख्यालय से 11 किलोमीटर दूर है. इसका निर्माण कालाकांकर रियासत के राजा हनुमंत सिंह ने लगभग 15-16वीं शताब्दी में कराया था. लेकिन, आलम यह है कि अब बावली की सीढ़ियां टूट रही हैं. समय के अंतराल और देख-रेख के अभाव के चलते यह बावली भी अपना वजूद खोती जा रही है और जर्जर अवस्था में आ गई है.
इतिहासकार बताते हैं कि बावली में बने गहरे कुएं के चारों तरफ 52 कमरे हैं. बावली का निर्माण लाखौरी ईंटों से हुआ था. यहां गर्मी के दिनों में कालाकांकर रियासत के राजा हनुमत सिंह आराम करने के लिए आते थे. बावली के बगल ही 4 किलोमीटर में सागर फैला हुआ है. स्थानील लोगों का कहना है कि बावली के कुएं की विशेषता है कि इसका पानी कभी खत्म नहीं होता है. भयंकर गर्मी में भी इसका पानी बिलकुल फ्रीज के पानी की तरह शीतल रहता है.
पिछले कई दशक से जब से पानी की समस्या दूर होती गई, वैसे प्राचीन बावली से ग्रामीणों की दूरियां बढ़ती गईं. आलम यह है कि रामपुर मुख्य बाजार में बावली होने के कारण अपना वजूद खो रही है. वहीं, रखरखाव नहीं होने के कारण बावली के आसपास अतिक्रमणकारियों ने अतिक्रमण तक कर लिया है. बावली तक पहुंचने के लिए फिलहाल कोई मार्ग नहीं बचा. बावली में बना कुआं सदियों पुराना है. ग्रामीणों का कहना है कुएं से कभी पानी खत्म नहीं होता. इसकी गहराई का कोई आंकड़ा नहीं है कि कितना गहरा है. प्राचीन काल में इसी कुएं का पानी लोग पीने और नहाने के लिए उपयोग करते थे. अब बहुत सालों से सफाई नहीं होने से पूरा पानी दूषित और गंदा हो गया है.
सरकार ने जल संरक्षण के लिए कई योजनाएं चलाईं. बावजूद इसके बावली का जीर्णोद्धार नहीं हो सका. जबकि, सरकार ने जल संग्रहण के लिए बावली व तालाबों के जीर्णोंद्धार के लिए लाखों रुपये खर्च किए. स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता के चलते भी इसका रख-रखाव नहीं हो पाया. स्थानीय लोगों की मांग है कि बावली का जीर्णोद्धार हो जाए तो एक बार फिर से रामपुर बावली की खोई हुई पहचान वापस मिल जाए. राजा दिनेश सिंह की पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह ने अपील की है कि बावली को बनवाया जाए. इस बावली की वजह से ही यह पूरा क्षेत्र जाना जाता है. लोगों का कहना है कि हिंदू-मुस्लिम सभी चाहते हैं कि इसका जीर्णोंद्धार हो. उनका कहना है कि यह एक पवित्र जगह है. इसका पुन: निर्माण होना चाहिए, जिससे खोया इतिहास और धरोहर को बचाया जा सके.