प्रतापगढ़ : जिले के रामपुर इलाके के लालगंज अझारा तहसील में सई नदी के किनारे बाबा घुइसरनाथ का धाम है. इस शिवालय में दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं. धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक विशिष्टता के कारण यह धाम करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. महाशिवरात्रि के अवसर पर जलाभिषेक करने के लिए भक्त पहुंचते हैं. तीन दिनों तक बाबा घुइसरनाथ की पूजा होती है.
मंदिर के महंत मयंकभाल गिरी बताते हैं कि मान्यता है कि भगवान राम वनवास जाते समय थक गए थे. सई नदी के स्वच्छ जल से स्नान के बाद वह घुश्मेश्वर जी के दर्शन कर आगे बढ़े थे. भगवान श्रीराम के विश्राम के दौरान उनके शरीर से पसीने की एक बूंद गिरी थी. इससे एक दिव्य करील का वृक्ष उत्पन्न हुआ. श्री घुइसरनाथ धाम पर आज भी श्रद्धालु जलाभिषेक करने के बाद करील का भी पूजन करते हैं. इस वृक्ष का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में किया है. यूपी सरकार की ओर से इसे संरक्षित किया गया है.
शिव पुराण में वर्णित है कथा :मंदिर के महंत मयंकभाल गिरी बताते हैं कि शिव पुराण में वर्णित एक कथा है. यहां सुदेहा और सुधर्मा नाम के ब्राह्मण-ब्राह्मणी रहा करते थे. उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी. इस पर सुदेहा ने अपनी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति के साथ करा दिया. घुश्मा बहुत बड़ी शिवभक्त थी. वह प्रतिदिन शिवलिंग बनाती और उसका पूजन करती. इसके बाद विसर्जन कर देती थी.कुछ दिनों बाद घुश्मा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. इसके बाद उसकी बहन सुदेहा को इससे जलन होने लगी. पुत्र जब बड़ा हुआ तो जिस तालाब में घुश्मा शिवलिंग काे विसर्जित करती थी, उसी तालाब में बेटे की हत्या करके फेंक दिया. घुश्मा को पता चला कि पुत्र की हत्या हो गई है, और हत्या बहन ने ही की है. इस दौरान घुश्मा शिव के पूजन के लिए बैठी थी. महंत ने बताया कि घुश्मा के इसी त्याग पर बाबा भोलेनाथ प्रसन्न हुए. प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा. इसके बावजूद घुश्मा ने भगवान से कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए. इस पर भगवान शिव ने उसके पुत्र को जीवित कर दिया.
घुश्मा ने भगवान शिव से मांगा था वरदान : महंत मयंक बालगिरी बताते हैं कि बाबा भोलेनाथ के कहने पर जनकल्याण के लिए घुश्मा ने वरदान मांगा था कि आप यही घुश्मेश्वर के नाम से हमेशा के लिए प्रकट और प्रसिद्ध हो जाइए. इसके बाद स्वयंभू शिवलिंग उत्पन्न हो गया. यह घुश्मा के नाम से घुश्मेश्वर नाथ के नाम से जाना गया. हालांकि अब यह घुइसरनाथ धाम के नाम से प्रचलित है. बाद में यह शिवलिंग टीले के रूप में परिवर्तित हो गया था.