प्रतापगढ़: उत्तर प्रदेश में रोडवेज बसों से यात्रा करना महंगा हो गया है. महीनेभर पहले उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग ने प्रति किलोमीटर 25 पैसे किराया बढ़ा दिया. लेकिन, खटारा बसों से यात्रियों को निजात नहीं मिली. जिम्मेदार पैसेंजर्स की जान की परवाह नहीं कर रहे हैं. ये खटारा बसें लंबे रूट पर फर्राटे भर रही हैं. इन बसों में यात्री यात्रा करने को बेबस हैं. अब सवाल यह उठता है कि अगर इन बसों की वजह से कोई हादसा या अनहोनी हो गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा. खटारा बसों को लेकर तकरीबन एक महीने बाद ईटीवी भारत ने ग्राउंड जीरो पर जाकर रोडवेज बसों की स्थिति का रियलिटी चेक किया.
रियलटी चेक के दौरान प्रतापगढ़ रोडवेज डिपो में दर्जनों बसें ऐसी पाई गईं, जिनकी उम्र पूरी हो गई है. बावजूद इसके सड़कों पर दौड़ रही हैं. इनमें सबसे ज्यादा खटारा बसें मुख्यालय से कानपुर जाने वाली हैं. जिनकी हालत बेहद खराब है. नियमों को ताक पर रखकर ये बसें संचालित की जा रही हैं. बसों में न तो फर्स्ट एंड बॉक्स है और न ही अग्निशमन यंत्र लगे हैं. बसों में फायर सेफ्टी के इंतजामों को लेकर घोर लापरवाही बरती जा रही है. परिवहन निगम की ओर से सुरक्षा को लेकर कोई सावधानी नहीं बरती जा रही है. ऐसे में यदि इन बसों में आगजनी की घटनाएं हुईं तो हाहाकार मच जाएगा.
जनपद डिपो से 58 निगम की और 16 अनुबंधित कुल 74 बसें संचालित हो रही हैं. इन बसों में दर्जनों बसें ऐसी हैं जो कई लाख किलोमीटर चल चुकी हैं. उनके मीटर बंद हो चुके हैं. आए दिन लॉग रूट की बसें रास्ते में खराब हो जाती हैं और यात्री समेत चालक-परिचालक को भारी समस्याओं को सामना करना पड़ता है. रोडवेड डिपो की खटारा बसें ज्यादातर कानपुर, दिल्ली और प्रयागराज रूट पर चलती हैं. कानपुर जाने वाली बस में यात्रा कर रहे यात्री एसके द्विवेदी का कहना है कि बसों का कोई टाइम नहीं हैं. कब चले कब पहुंचाए, कब कहां खड़ी हो जाएं, कोई सुरक्षा के मानक नहीं लगे हैं. उनका कहना है कि किराया तो बढ़ गया है बाकी कोई सुविधा नहीं. जब बसें खटारा रहेंगी तो जरूरी नहीं की समय से पहुंचा दें, कहीं भी खड़ी हो सकती हैं.