प्रतापगढ़:तब जंग-ए-आजादी का दौर था, जब देश के कोने-कोने से स्वतंत्रता आंदोलन के सारथी घरों से निकल पड़े थे. अब हम स्वतंत्र हैं, तो हमारे लिए मौलिक अधिकार एक बड़ा सवाल है. इन सबमें शिक्षा एक मात्र रास्ता है, जिसके जरिए हम अपने अधिकारों के लिए लड़ भी सकते हैं और देश को आगे ले जा सकते हैं. लेकिन अगर 2011 के जनगणना डेटा को देखें तो हम पाते हैं कि देश के 78 लाख बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ कमाई भी करनी पड़ती है, तो वहीं 8.4 करोड़ बच्चे आज भी स्कूलों से वंचित हैं. यह आंकड़े अब और भी हो सकते हैं. ऐसे में प्रतापगढ़ के शिक्षक आलोक सिंह गरीब बच्चों के लिए शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. आलोक सिंह सैकड़ों बच्चों को शिक्षा की रोशनी से प्रकाशित करने का अभियान चला रहे हैं.
आलोक हर रोज जिंदगी की जंग लड़ने वाले और कूड़ा इकट्ठा कर अपना पेट भरने वाले बच्चों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं. शाम होते ही मैले कुचैले कपड़ों में लिपटी मासूम जिंदगियां, हाथों में कॉपी किताब लेकर बैठ जाती हैं. ब्लैक बोर्ड पर मास्टर जी उन्हें क से कमल ख से खरगोश पढ़ाने में जुट जाते हैं.
शहर के दहिलामऊ के रहने वाले आलोक कुमार सिंह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडलिस्ट हैं. हर सामाजिक कार्य में वह बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहते हैं. करीब आठ साल पहले वह शहर के रामलीला मैदान में बाइक से टहल रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि कुछ बच्चे मैले कपड़ों में कूड़े के ढेर में कुछ ढूंढ रहे थे. पास ही कुछ दूर पर करीब तीन दर्जन झोपड़ियां थी, जिनमें लोग रहते थे. इन लोगों के बच्चे गंदी और बदबूदार जिंदगी जीने को मजबूर थे. इनके लिए न तो सरकार की योजनाएं थीं और न ही इनकी किसी को सुध थी. ये बच्चे एक अलग जिंदगी जी रहे थे. ये लोग सामने शहर की रोशनी, गाड़ियों की आवाज और चहल पहल में कही खो से गए थे, शिक्षा से इनका कोई लेना देना नहीं था, लेकिन आलोक सिंह ने उन्हें शिक्षा देते हुए मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया. आलोक 2012 से यह काम कर रहे हैं.
आलोक सिंह बताते हैं कि इन लोगों को देखकर मन में एक विचार कौंधा कि क्यों न इन्हें शिक्षा की रोशनी से चित-परिचित कराया जाय. दूसरे दिन से ही हम इस काम मे जुट गए. पहले तो लैपटॉप में बच्चों को तस्वीरें, वीडियो दिखाकर दोस्ती की फिर उन्हें कॉपी, किताब पेंसिल दिया. धीरे-धीरे उनके मन में पढ़ाई की ललक पैदा की और फिर यह सिलसिला निकल पड़ा. शाम होते ही मैं और मेरा साथी श्लोक कुमार उस मलीन बस्ती में ब्लैक बोर्ड लेकर पहुंच जाते. अंधेरा होने तक पढ़ाते, चाहे आंधी-तूफान आए बिना रुके ये सिलसिला चलता रहा.