पीलीभीत: जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर धर्मेंद्र (Electronic Engineer Dharmendra) का दावा है कि उसने एक ऐसी डिवाइस (Device) बनाई है जिससे डायबिटीज (Diabetes) जैसी गंभीर बीमारी कुछ ही दिन में खत्म हो जाएगी. यह डिवाइस कोई महंगी मशीन नहीं, बल्कि एक छोटा सा बल्ब (Bulb) है, जिसका नाम इन्सोल टी (Insoul T) है. इस खोज को लेकर अब युवा इंजीनियर को कई विदेशी संस्थाओं से बुलावा आया है, लेकिन कोरोना काल के चलते युवा वैज्ञानिक अपनी खोज को सरकार के सहारे छोड़ कर घर पर ही रहने को मजबूर है.
पीलीभीत के पूरनपुर तहसील क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव गोपालपुर (Gopalpur Village) के रहने वाले प्राइवेट शिक्षक विश्राम सागर का 32 वर्षीय दिव्यांग पुत्र धर्मेंद्र बचपन से ही पढ़ाई में तेज था. पिता की मानें तो धर्मेंद्र बचपन से ही कुछ अलग करने की सोच रखता है. अपने साथ-साथ अन्य दिव्यांगों के उज्जवल भविष्य के लिए कुछ करना चाहता था. इसी सोच के चलते एएसआईटी कानपुर से बीटेक में दाखिला लिया और इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. परिवारजनों की माने तो इस दौरान ही धर्मेंद्र की मां को डायबिटीज की समस्या (Diabetes Problems) हो गई और इलाज कराने के लिए परिवारजनों को अत्यधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे थे.
'मां की समस्या को देख कर की खोज'
रातों रात डायबिटीज को खत्म करने वाले बल्ब को बनाने वाले इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर धर्मेंद्र का कहना है कि मां विमला देवी को डायबिटीज की समस्या से जूझता देख उसे कुछ अलग करने का विचार आया और डायबिटीज के खात्मे के लिए उसने डायबिटीज के बारे में खोजबीन शुरू कर दी. कई डॉक्टरों से डायबिटीज के बढ़ने और घटने के बारे में जानकारी जुटाई. 4 साल के कठिन अध्ययन के बाद आखिरकार धर्मेंद्र डायबिटीज की जानकारी जुटाने में सफल हो गया और डायबिटीज जैसी बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए कुछ अलग सोच के साथ अपनी खोज में जुट गया. लगभग 10 सालों तक डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारी पर चले अध्ययन और खोज के बाद इन्सोल टी (Insoul T) नामक एक डिवाइस बनाई है, जो देखने में एक साधारण बल्ब जैसा है, लेकिन धर्मेंद्र का दावा है कि इस डिवाइस के सहारे 90 से 120 दिन के अंतराल पर डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारी को खत्म किया जा सकता है.
मां पर किए गए प्रयोग के दौरान हासिल हुई सफलता
युवा वैज्ञानिक धर्मेंद्र कुमार का कहना है कि इन्सोल टी डिवाइस बनाने के बाद उसने अपनी मां को डायबिटीज मुक्त कर दिया है. धर्मेंद्र की मां विमला देवी जो अब तक तमाम परिजनों के सहारे डायबिटीज मरीज बनकर जीवन काट रहीं थी, आज सब कुछ खा पी रही हैं और जीवन से परहेज नाम की चीज गायब हो चुकी है. डायबिटीज भी सामान्य स्तर पर आ गई है, जिससे अब धर्मेंद्र अपने इस अविष्कार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करना चाहता है.
तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ा है धर्मेंद्र
पूरनपुर तहसील क्षेत्र के एक छोटे से गांव गोपालपुर के रहने वाले विश्राम सागर पेशे से प्राइवेट शिक्षक हैं, जो बच्चों को पढ़ाकर परिवार का गुजर-बसर करते हैं. परिवार की आय के नाम पर शिक्षक होना ही आय का मुख्य स्रोत है. आर्थिक तंगी के बीच परिवार के खर्चों में कटौती कर विश्राम सागर अपने बच्चों को पढ़ा लिखा रहे हैं. दो बेटों और एक बेटियों में दिव्यांग बेटा धर्मेंद्र सबसे बड़ा है, जो बचपन से ही कुछ अलग करने की सोच रखता है. आर्थिक तंगी से जुझने के बावजूद भी परिवारजनों ने धर्मेंद्र को पढ़ा लिखा कर इंजीनियर बनाया और अब धर्मेंद्र की खोज के बाद परिवारजनों को उम्मीद है कि उनके दिन बदल जाएंगे.
कैसे काम करती है डिवाइस
युवा वैज्ञानिक धर्मेंद्र ने इन्सोल टी डिवाइस के बारे में जानकारी देते बताया कि इस डिवाइस को डायबिटीज से ग्रस्त मरीज को रात के वक्त उपयोग करना होता है, क्योंकि दिन में अत्यधिक रेडियंस होने के कारण डिवाइस की क्षमता कम हो जाती है. रात के वक्त डिवाइस को ऑन करने पर पूरा कमरा आइसोलेशन वार्ड में बदल जाता है, जिससे बॉडी का ऑक्सीडेशन अच्छे से होने लगता है. ऑक्सीडेशन अच्छे से होने पर बॉडी में मौजूद सेल्स अच्छे तरीके से कार्य करने लगते हैं. डायबिटीज से ग्रस्त मरीज को यह प्रक्रिया 90 से लेकर 120 दिन तक करनी होती है.
धर्मेंद्र बताते हैं कि बल्ब से निकलने वाली तरंगे हमारे शरीर में स्टेम सेल के जरिए प्रवेश करती हैं और धीरे-धीरे हमारे अमीनो एसिड्स के स्तर को बढ़ाती हैं व मजबूत बनाती हैं, जिससे न्यूरोट्रांसमीटर्स व रिसिवर्स पूरी तरह से काम करने लगते हैं. इससे हमारे शरीर के अंदर के बीटा सेल्स मजबूत हो जाते हैं और पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बनाने लगते हैं, जिससे डायबिटीज समाप्त होती है.
10 से 11 लोगों पर आजमा चुके हैं प्रयोग