मुजफ्फरनगर : कृषि कानून के विरोध में पिछले दो माह से किसान आंदोलन कर रहे हैं. वहीं भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के भावुक होने के बाद आंदोलन और मजबूत हो गया. वहीं चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बाद किसानों के बड़े नेता के रुप में राकेश टिकैत उभर आए हैं. लेकिन बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के बेहद करीबी और 1990 के दशक में उनके सलाहकार रहे वीरेंद्र सिंह ने टिकैत बंधुओं पर संगीन आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि विदेशी फंडिंग के साथ-साथ पंजाब के नशा माफिया इस आंदोलन को फाइनेंस कर रहे हैं. इतना ही नहीं भारतीय किसान यूनियन के पूर्व जिलाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह ने कहा कि राकेश टिकैत में दुर्योधन की आत्मा आ गई है.
ये किसान आंदोलन नहीं
वीरेंद्र सिंह ने गणतंत्र दिवस की घटना पर कहा कि यह शर्मनाक है. यह किसान का काम नहीं है. यह काम देश विरोधी ताकतों का है जिन्हें विदेशी ताकतें फाइनेंस कर रही हैं. यहीं ताकतें सीएए आंदोलन को भी फाइनेंस कर रही थीं और अब इस आंदोलन को भी भड़का रही हैं. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं है तो ये लोग बता दें कि आखिर सारी व्यवस्था कहां से आ रही है. उन्होंने कहा कि ये किसान आंदोलन नहीं है. किसान आंदोलन चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के जमाने में हुआ करता था. जब बाबा टिकैत पेड़ के नीचे हाथ पर रोटी सब्जी लेकर आंदोलन का निर्णय करते थे, आज आंदोलन फाइव स्टार हो गए हैं. हमें दिल्ली में 48 घंटे तक खाना नसीब नहीं हुआ था. 48 घंटे बाद चौधरी देवी लाल ने ब्रेड और पानी भिजवाया था. उस दौरान देवीलाल के साथ लालू प्रसाद यादव आये थे.
किसान को कर दिया बदनाम
वहीं राकेश टिकैत पर तंज करते हुए उन्होंने कहा कि इनके अंदर दुर्योधन की आत्मा आ गई है. कोई कृष्ण इन्हें नहीं समझा सकता. वो भी नहीं समझा था, ये भी समझने को तैयार नहीं है. उन्होंने कहा कि हर आंदोलन की परिणती दो ही होती है. या तो जबरदस्ती हटा दिया जाए या फिर बातचीत कर हल निकाल लिया जाए. उन्होंने कहा कि आज जो लोग किसान के नाम पर आंदोलन कर रहे हैं, ये किसान नहीं हैं, ये उनके भेष में कुछ और हैं. लेकिन सरकार इनको किसान समझकर बातचीत करने का प्रयास कर रही है, लगता है अभी सरकार का सब्र टूटा नहीं है. वीरेंदर सिंह ने कहा कि इन लोगों ने किसान को हमेशा के लिए बदनाम कर दिया. पहले के आंदोलन देश विरोधी नहीं था, लेकिन इन्होंने गणतंत्र दिवस पर जो कृत्य किया वो देश के साथ गद्दारी है.