मुजफ्फरनगर :जिले में विधानसभा की कुल 6 सीटें हैं. बुढाना सीट भी उन्हीं में से एक है. यहां की उपजाऊ भूमि के कारण किसान और मजदूर काफी सम्पन्न हैं. गन्ना और गेहूं यहां प्रमुख रूप से उगाया जाता है, इस जनपद में 8 शुगर मिल हैं, वहीं सैकड़ों की संख्या में पेपर मिल व स्टील प्लांट भी चलाए जा रहे हैं. इस जनपद की 70 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है.
बुढाना सीट का इतिहास
जनपद की बुढाना विधानसभा सीट पहली बार 1952 में अस्तित्व में आई थी. क्षेत्र के पहले विधायक श्री चंद बने थे, जो एलम के निवासी थी. उनके बाद 1962 में ठाकुर विजय पाल सिंह विधायक चुने गए. 1957 में कुंवर असगर अली निवासी लोई ने चुनाव जीता, लेकिन दो साल बाद ही मौत के बाद कांधला के रहने वाले कमरुद्दीन ने विधायक पद संभाला. 1967 में इस सीट को समाप्त कर नई कांधला सीट बनाई गई थी.
बुढाना कस्बा भी कांधला विधानसभा सीट का हिस्सा बन गया और वीरेंद्र वर्मा कांधला से विधायक बने. 2011 में परिसीमन के बाद बुढाना को फिर से विधानसभा सीट बनाया गया. 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के नवाजिश आलम ने चुनाव जीता. जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा की ओर से मीरापुर पर चुनाव लड़ा था. 2017 में बीजेपी के उमेश मलिक ने सपा के प्रमोद त्यागी को करीब 13 हजार वोट के अंतर से हराकर चुनाव जीता था.
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दंगा प्रभावित हैं क्षेत्र के कई गांव
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और किसानों के मसीहा स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का गांव सिसौली 2011 से पहले खतौली का हिस्सा था, लेकिन 2011 में हुए परिसीमन के बाद इसे बुढाना का हिस्सा बना दिया गया. 2013 के दौरान मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों से विधानसभा क्षेत्र अच्छा-खासा प्रभावित रहा. इस क्षेत्र के दर्जनों गांव आज भी दंगा प्रभावित हैं.