मुजफ्फरनगर:बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकार भले ही जिला प्रसाशन को अलर्ट कर दिया हो, लेकिन दिल्ली के साथ-साथ मुजफ्फरनगर भी प्रदूषण की चपेट में है. जनपद के सभी कोल्हुओं की भट्टियां गन्ने की खोई या लकड़ियों से न जलाकर उन्हें पेपर मिलों के बॉयलर से रीसायकल होकर निकलने वाली पन्नियों के स्क्रेप के साथ प्लास्टिक और रबड़ के जूते चप्पलों के स्क्रेप से जलाया जा रहा है. वहीं कोल्हुओं की चिमनियों से निकलने वाले जहरीले धुंए और पेपर मिलों से निकलने वाली काली राख उड़कर वायुमंडल को प्रदूषित कर रही है.
क्षेत्रवासी वायुमंडल में फैल रहे प्रदूषण से किसी गंभीर बीमारी होने और खेतों में खड़ी फसलों के नष्ट होने को लेकर चिंतित दिखाई पड़ रहे हैं. कोल्हू मालिक कोल्हू की भट्टियों में जलने वाले गन्ने की खोई, पेपर मिलों में अच्छे दामों पर बिक्री कर मोटा मुनाफा कमाने में लगे हैं. वहीं भट्टियों में प्लास्टिक का कचरा फूंक कर अपना मोटा मुनाफा कमाकर क्षेत्रवासियों को जहरीला वायु प्रदूषण भी परोस रहे हैं. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से निरंतर प्रदूषण फैलाने वाली उद्योग इकाइयों पर शिकंजा कसा जा रहा है और जुर्माने की कार्रवाई भी अमल में लाई जा रही है. मुजफ्फरनगर के वायुमंडल में अब तक की गई प्रदूषण की जांच में तीसरे स्थान पर पाया गया है, जो की एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI ) के अनुसार 179 प्रदूषण पाया गया गया है, जो की Moderate की श्रेणी में आता है.
उत्तर प्रदेश के आगरा, बागपत, बुलंदशहर, गाजियाबाद, नोएडा, हापुड़, मेरठ, मुरादाबाद और वाराणसी समेत अन्य शहरों की आब ओ-हवा अब जहरीली हो चुकी है. मुजफ्फरनगर शहर की वायु गुणवत्ता अच्छी नहीं है. लॉकडाउन हटने के बाद इंडस्ट्री, ट्रांसपोर्ट, कोल्हू इत्यादि सभी व्यवसाय पटरी पर आ चुके हैं, जिसके चलते इंडस्ट्री और कोल्हुओं की चिमनियों से निकलने वाला जहरीला धुंआ आब-ओ-हवा में जहर घोल रहा है. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंतरण बोर्ड मुजफ्फरनगर लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उद्योग बंधुओं को मीटिंग कर चेतावनी दे रहा है. किसी भी प्रकार की अनियमतता पाए जाने पर फेक्ट्रियों पर जुर्माने की कार्रवाई करते हुए फेक्ट्रियों को सील कर जुर्माने की रकम भी वसूली जा रही है.
कैसे फैल रहा प्रदूषण
वायुमंडल में प्रदूषण फैलाने के मुख्य रूप से जिम्मेदार पेपर इंडस्ट्री के अलावा जनपद में चल रहे गुड बनाने के लगभग 1600 कोल्हू भी हैं. जनपद के सभी कोल्हुओं की भट्टियों को गन्ने की खोई या लकड़ियों से न जलाकर उन्हें पेपर मिलों के बॉयलर से रीसायकल होकर निकलने वाली पन्नियों के स्क्रेप के साथ प्लास्टिक और रबड़ के जूते चप्पलों के स्क्रेप से जलाया जा रहा है. वहीं पेपर इंडस्ट्री की भट्टियों में भी सुखी पन्नियों और प्लास्टिक के कचरे को चोरी छिपे जलाया जा रहा है. पेपर मिल की भट्टियों से निकलने वाली काली राख को भी ठेकेदारों के माध्यम से खुले स्थानों पर सड़कों के किनारे भण्डारण किया जा रहा है, जो कि तेज हवा चलने के कारण किसान की फसलों के साथ मानव जन जीवन को भयानक बिमारियां परोसकर प्रभावित करती हैं.