मुजफ्फरनगर: एक ज्योति जो 33 साल से किसानों को श्रद्धांजलि दे रही है. एक ज्योति जो तीन दशक से अन्नदाताओं के अधिकारों को याद कर रही है. एक ज्योति जो किसानों के मसीहा महेंद्र सिंह टिकैत के संघर्ष का प्रतीक बनी हुई है. यह अखंड ज्योति मुज्जफरनगर के सिसोली में जल रही है. सिर्फ यह ज्योति ही नहीं, सिसोली में महेंद्र सिंह टिकैत के कमरे का हुक्का, उनके आंदोलनों के चित्र आज भी बाबा टिकैत की उपस्थिति का अहसास कराते हैं. सिसोली क्षेत्र को किसानों की राजधानी भी कहा जाता है. दरअसल, किसानों के मसीहा कहलाने वाले बाबा महेंद्र सिंह टिकैत ने जनपद शामली में बिजली की बढ़ी हुई कीमतों के विरोध में एक बड़ा आंदोलन किया था. इस आंदोलन में जाने से पहले बाबा टिकैत ने 01 मार्च 1987 में देसी घी से अखंड ज्योति जलाकर आंदोलन का बिगुल बजाया था. आज भी किसान इस ज्योति को नमन करते हैं.
सिसोली में जल रही है महेंद्र सिंह टिकैत की जलाई ज्योति सफलता की धारणा
यह भी धारणा है कि जिस आंदोलन में भी अखंड ज्योति जलाई गई, वह आंदोलन सफल हुआ. बाबा टिकैत के निधन के बाद उनके कमरे में बाबा के चित्र के सम्मुख निरंतर यह ज्योति प्रज्वलित है. आंदोलन में शहीद हुए किसानों की शहादत में प्रज्जवलित इस अखंड ज्योति से किसानों को प्रेरणा मिलती है. रोजाना इस ज्योति में घी अर्पित किया जाता है.
सिसोली में जल रही है महेंद्र सिंह टिकैत की जलाई ज्योति आज भी बाबा टिकैत का हुक्का गर्म किया जाता है
किसानों के लिए लंबी लड़ाई और अनेक किसान आंदोलन करने वाले 76 वर्षीय बाबा महेंद्र सिंह टिकैत का 15 मई 2011 को लंबी बीमारी के चलते निधन हुआ. बाबा टिकैत के कमरे में आज भी उनकी खाट पर बिस्तर लगाया जाता है. बाबा टिकैत का हुक्का बाकायदा गर्म करके उनकी खाट के पास रखा जाता है. बाबा की खाट के पास बाकायदा लकड़ी के बने मूढ़े आज भी रखे हुए हैं. इन पर बैठकर क्षेत्र के ग्रामीण किसान अपनी समस्याएं बाबा को बताते थे. कमरे में बाकायदा साफ सफाई का ध्यान रखा जाता है. इसी कमरे में बाबा की देसी घी की अखंड ज्योत प्रज्जवलित रहती है. बाबा टिकैत के बरामदे में बने हॉल की दीवारों पर लगाए गए चित्रों से बाबा के संघर्ष और आंदोलन को आज भी जीवंत रखा गया है.
महेंद्र सिंह टिकैत का जीवन
उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फरनगर के सिसोली गांव में 15 मई 1935 को एक किसान परिवार में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म हुआ था. महेंद्र सिंह टिकैत युवा अवस्था से ही चौधरी चरण सिंह के अनुयायी थे. महेंद्र सिंह टिकैत के चार पुत्र और दो पुत्रियां हैं. महेंद्र सिंह टिकैत के सबसे बड़े बेटे नरेश टिकैत वर्तमान में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बालियान खाप के अध्यक्ष हैं. दूसरे नंबर के बेटे राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. तीसरे बेटे नरेंद्र टिकैत गांव में रहकर खेत-खलियान का सारा काम देखते हैं. चौथे बेटे सुरेंद्र टिकैत जनपद मुजफ्फरनगर से बाहर रहते हैं. बाबा टिकैत ने करीब 25 वर्षों तक किसानों की समस्याओं को लेकर संघर्ष किया और भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक संगठन की स्थापना की. उत्तर प्रदेश और हरियाणा प्रदेश के जाट किसानों में बाबा टिकैत का अपना अलग ही वर्चस्व था. बाबा टिकैत शुरू से ही पशु प्रेमी थे. बाबा टिकैत ने अच्छी नस्लों की गाय और भैंस अपने घेर पाल रखी थीं. इतना ही नहीं बाबा टिकैत ने एक घोड़ी भी पाल रखी थी. बाबा टिकैत के परिवार ने उन सभी चीजों को आज भी जीवंत रखा है, जो बाबा टिकैत को पसंद था.
किसानों के प्रति बाबा टिकैत का संघर्षशील जीवन रहा
महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष थे. महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसोली गांव में हुआ था. उन्होने दिसंबर 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के खिलाफ मुजफ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरू किया था. इसी आंदोलन के दौरान एक मार्च 1987 को किसानों के एक विशाल प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में दो किसान और पीएसी का एक जवान मारा गया था. इस घटना के बाद टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए. उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने टिकैत की ताकत को पहचाना और खुद सिसौली गांव जाकर किसानों की पंचायत को संबोधित किया और राहत दी. इसके बाद से ही टिकैत ने पूरे देश में घूम घूमकर किसानों के लिए काम किया. उन्होंने अपने आंदोलन को राजनीति से बिल्कुल अलग रखा. कई बार राजधानी दिल्ली में आकर भी धरने प्रदर्शन किए. चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत अपने जीवन काल में किसानों के हक की लड़ाई के लिए अनेक बार जेल भी गए.
बाबा टिकैत के आंदोलन से दहल गई थी राजधानी दिल्ली
आज से 32 साल पहले भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक रहे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने दिल्ली को ठप कर दिया था. उस वक्त केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी. उन्हें किसानों के आगे झुकना ही पड़ा था. दो माह से कड़ाके की सर्दी में सड़कों पर डटे किसानों को सत्ता से टकराने का जज्बा और प्रेरणा बाबा टिकैत से ही मिली. किसानों को अपने हक के लिए लड़ना सिखाने वाले चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के एक इशारे पर लाखों किसान जमा हो जाते थे. कहा तो यहां तक जाता था कि किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए वह सरकारों के पास नहीं जाते थे, बल्कि उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि सरकारें उनके दरवाजे पर आती थीं.
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और बाबा टिकैत का सीधा टकराव
सन 2008 में किसानों के उत्पीड़न को लेकर एक पंचायत जनपद बिजनौर में की गई थी. इसमें चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत भी थे. उस समय प्रदेश में बसपा की सरकार थी और मायावती मुख्यमंत्री थीं. बाबा टिकैत ने अपने संबोधन में मायावती पर टिप्पणी की, जिस पर प्रदेश की मुख्य्मंत्री नाराज हो गईं. बाबा टिकैत के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. उनकी गिरफ्तारी को लेकर पुलिस ने तैयारी कर ली. बाबा की गिरफ्तारी के विरोध में हजारों किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर सिसोली पहुंच गए. सभी रास्तों को सील कर दिया गया. किसानों का जनसैलाब देखकर प्रशासन सहम गया. सुनियोजित ढंग से बाबा टिकैत और मायावती का विवाद समाप्त हुआ. इसी मामले में हुई पंचायत में प्रदेश भर के किसानों और राजनैतिक पार्टियों ने बाबा को समर्थन देकर बाबा टिकैत का स्वाभिमान बचाया था.
किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का मुजफ्फरनगर में निधन
मुद्दा चाहे गन्ना भुगतान का हो या फिर बिजली-पानी का. बाबा टिकैत किसान हित में कभी पीछे नहीं रहते थे. अधिकारियों के यहां हुक्के की गुड़गुड़ाहट के साथ डेरा डाल देते थे और तब तक नहीं उठते थे जब तक समस्या का समाधान न हो जाए. बाबा टिकैत ने अपने जीवनकाल में बहुत से ऐतिहासिक आंदोलन किए हैं. चौधरी टिकैत ने कहा था कि सरकार की गोली और लाठी, किसान की राह नहीं रोक सकते. किसानों के हित के लिए टिकैत सरकार से कई बार नाराज हुए. किसानों के लिए उन्होंने सरकार से कई बार आमना-सामना किया. टिकैत का प्रभाव सूबे से लेकर देश की राजनीति तक था, लेकिन उन्होंने किसान आंदोलन को राजनीति से बिल्कुल अलग रखा. किसानों के प्रति अपने आप को समर्पित करते हुए चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने 15 मई 2011 को अंतिम सांस ली. उनके निधन पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राजनेताओं और किसानों तक ने गहरी संवेदना व्यक्त की थी. किसानों के बीच वह आज भी जिंदा हैं.
पिता की राह पर चल रहे राकेश टिकैत
पिछले दो महीनों से दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर कृषि बिल वापसी को लेकर चल रहे किसान आंदोलन की बागडोर बाबा टिकैत के बेटे राकेश टिकैत ही संभाल रहे हैं. यह आंदोलन कब तक जारी रहेगा और क्या परिणति होगी यह अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन इस ऐतिहासिक आंदोलन ने एक बार फिर बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के संघर्ष की यादें ताजा कर दी हैं, लेकिन ध्यान यह भी रखना होगा कि यह आंदोलन किसान हित के लक्ष्य से न भटके.