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ओवरलोडिंग से चंदौली के स्टील ब्रिज समेत पूर्वांचल के सभी पुलों पर मंडरा रहा खतरा - स्टील ब्रिज चंदौली

बिहार और उत्तर प्रदेश को जोड़ने वाले कर्मनाशा पुल की जगह बनाए गए स्टील ब्रिज पर खतरा मंडरा रहा है. यह खतरा ओवरलोडिंग की वजह से मंडराने लगा है. अगर ओवरलोडिंग को बंद नहीं किया गया तो पूर्वोत्तर भारत से संपर्क टूट सकता है.

special story on overloading from chandauli
ओवरलोडिंग से चंदौली के स्टील ब्रिज समेत पूर्वांचल के सभी पुलों पर मंडराया खतरा.

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Published : Jul 20, 2020, 10:45 PM IST

चंदौली: यूपी को बिहार समेत पूर्वोत्तर भारत से जोड़ने वाले कर्मनाशा पुल के क्षतिग्रस्त होने के बाद बारिश के सीजन में परिवहन व्यवस्था चालू रखने के लिए वैकल्पिक तौर पर स्टील ब्रिज का निर्माण किया गया, जिसकी लोड टेस्टिंग भी कर ली गई है. इसके जरिए बिहार से यूपी में प्रवेश किया जाएगा, जिसकी क्षमता 50 टन बताई जा रही है, लेकिन ओवरलोडिंग के खेल के लिए विख्यात इस रूट पर यह पुल भगवान भरोसे ही है.

जर्जर अवस्था में पुल.

अंधेरे में होता है ओवरलोडिंग का खेल
स्टील पुल का इस्तेमाल बिहार से आने के लिए किया जा रहा है, जिसकी क्षमता 50 टन है, लेकिन रात के अंधेरों में चोरी-छिपे ट्रक 80 से 90 टन माल और बालू लादकर पार हो रहे है. इसके लिए चंदौली में निगरानी का जिम्मा पुलिस और परिवहन विभाग को सौंपा गया है. जबकि बिहार में कैमूर और रोहतास जिला प्रशासन को इसकी जिम्मेदारी दी गई है. ताकि ओवरलोड वाहन यहां तक पहुंच ही न सके, लेकिन बावजूद इसके ओवरलोडिंग का खेल बदस्तूर जारी है.

...नहीं तो ध्वस्त हो जाएंगे सड़क और एप्रोच मार्ग
ओवरलोडिंग के कारण कर्मनाशा नदी पर नवनिर्मित स्टील ब्रिज का एप्रोच मार्ग भी धंस गया है, जो ओवरलोडिंग के खेल की कहानी बताने के लिए काफी है. एनएचएआई के टेक्निकल मैनेजर नागेश सिंह ने कहा कि ओवरलोड वाहनों पर बिहार सरकार ने प्रतिबंध नहीं लगाया तो पुल के साथ सड़क और एप्रोच मार्ग भी ध्वस्त हो जाएंगे. वहीं चंदौली से बिहार जाने के लिए नदी पर बने ब्रिटिश काल के पुल का जीर्णोद्धार करके बिहार की तरफ जाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.

साल 2009 में बना था पुल
दरअसल, दिल्ली-हावड़ा एनएच-2 पर स्थित कर्मनाशा पुल का निर्माण 2009 में 155 करोड़ की लागत से हुआ था, लेकिन 28 दिसंबर 2019 में पुल के दो पिलर के विंग टूट गए थे. जबकि अन्य पिलर में दरार आ गई थी. इसके बाद तात्कालिक रूप से 25 करोड़ की लागत से दो डायवर्जन पुल बनाकर आवागमन शुरू कराया गया था, जो बरसात तक के लिए ही बना था. उसके बाद नदी का पानी बढ़ने पर इसे हटा दिया गया.

पूर्वोत्तर भारत से संपर्क टूटने का डर
बारिश के दिनों में परिवहन के लिए यहां स्टील ब्रिज बनाया गया, जिसकी टेस्टिंग भी पूरी की जा चुकी है. इस पुल की क्षमता 50 से 55 टन है. लेकिन अब एनएचएआई के अधिकारियों को डर सता रहा है कि अगर ओवरलोड ट्रक के यहां से गुजरी तो पुल भी क्षतिग्रस्त हो जाएगा. जिससे पूर्वोत्तर भारत से संपर्क कट जाएगा. इस बाबत एनएचएआई के अधिकारियों ने ओवरलोडिंग पर लगाम लगाने के लिए कैमूर, रोहतास और चंदौली समेत वाराणसी के जिला प्रशासन को पत्र लिखकर ओवरलोडिंग पर लगाम लगाने के लिए अपनी मांग दोहराई है.

स्टील ब्रिज पर निर्माण कार्य.

...जब कुछ घंटे के लिए परिचालन हुआ ठप
बता दें कि पिछले दिनों पुल पर ओवरलोड वाहनों के धड़ल्ले से परिचालन को देखते हुए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने कुछ घंटों के लिए पुल पर परिचालन ठप कर दिया था. इससे वाहनों के खड़े होने से बिहार के इलाकों में लंबा जाम लग गया. इसका असर चंदौली के भी विभिन्न इलाकों में देखने को मिला. इसके बाद बिहार के कैमूर प्रशासन ने ओवरलोड वाहनों पर रोक लगाने की प्रतिबद्धता दोहराई, जिसके बाद परिचालन शुरू किया गया.

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डायवर्ट व्यवस्था लागू कर भेजे जा रहे वाहन
फिलहाल इस पुल पर 50 टन की क्षमता वाले वाहनों के गुजरने की ही छूट है, जबकि उच्च क्षमता वाले वाहनों को डायवर्जन के जरिए अन्य प्रांतों में भेजा जा रहा है. एक मार्ग मोहनियां के समीप से पहले डायवर्ट करते हुए सोनभद्र के रास्ते मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भेजा जा रहा है. इसके अलावा बक्सर के रास्ते गाजीपुर, गोरखपुर समेत अन्य जिलों में डायवर्जन के जरिए ओवरलोड ट्रकों को गुजारा जा रहा है.

यहां जो लोडिंग पैटर्न है, उससे स्टील ब्रिज ही नहीं, बल्कि बिहार और पूर्वांचल के सभी नदियों पर स्थापित किए गए ब्रिज पर टूटने का खतरा मंडरा रहा है.

- नागेश सिंह, टेक्निकल मैनेजर, एनएचएआई

ओवरलोडिंग बनी गंभीर समस्या
गौरतलब है कि नेशनल हाईवे पर स्थित इस कर्मनाशा पुल के टूटने की मुख्य वजह ओवरलोडिंग ही सामने आई थी. यही नहीं, एनएचएआई के अधिकारी ने बताया कि देशभर के सभी पुल, नेशनल हाइवे और प्रादेशिक पुल सभी की क्षमता 50 टन ही होती है. विषम परिस्थितियों में इसकी क्षमता 80 से 100 टन तक बनाई जाती है.

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