चंदौली: उत्तर प्रदेश के चंदौली (Chandauli) जिले की सैयदराजा विधानसभा सीट राजनीतिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण सीट है. इस विधानसभा से होकर गुजरने वाली कर्मनाशा नदी उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा को विभाजित करती है. इस विधानसभा क्षेत्र के अधिकांश गांव एक तरफ जहां बिहार बॉर्डर से सटे हुए हैं तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के गाजीपुर का बॉर्डर भी इस विधानसभा क्षेत्र के कई गांव की सीमा से लगे हैं. इस क्षेत्र को उत्तर प्रदेश में बिहार, बंगाल, ओडिशा और झारखंड का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. इस विधानसभा क्षेत्र के लोग कृषि पर आधारित हैं और इस इलाके में धान की बेहतरीन पैदावार होती है.
सैयदराजा विधानसभा में शिक्षा के लिए कॉलेज तो हैं, लेकिन उच्च शिक्षा की इस विधानसभा क्षेत्र में किसी भी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है. वहीं, चिकित्सा के क्षेत्र में भी यह इलाका काफी पिछड़ा हुआ है और पूरे विधानसभा क्षेत्र में कोई भी बड़ा अस्पताल नहीं है. हालांकि अब चुनावी माह में सीएम योगी ने मेडिकल का शिलान्यास जरूर किया है. यहां बेहतर खेती के लिए नहरों का जाल तो है, लेकिन टेल तक पानी पहुंचना हमेशा से चुनौती रहा है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी की सीट रही है सैयदराजा
पूर्व में इस विधानसभा का नाम चंदौली सदर विधानसभा हुआ करता था, जो बाद में नए परिसीमन के बाद सैयदराजा हो गया. शुरुआती दौर की बात करे तो आजादी के बाद 1952 में पहली बार इस सीट पर कांग्रेस के पंडित कमलापति त्रिपाठी विधायक चुने गए थे. कमलापति त्रिपाठी प्रदेश के मुख्यमंत्री और रेल मंत्री रहे हैं. दूसरी और तीसरी विधानसभा चुनाव में भी पंडित कमलापति त्रिपाठी विधायक चुने गए.
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लेकिन चौथी विधानसभा चुनाव में लगातार 3 बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले पंडित कमलापति त्रिपाठी को सोशलिस्ट पार्टी के चंद्रशेखर ने मात्र 397 वोटों से हरा दिया था. पांचवीं विधानसभा के चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस से पंडित कमलापति त्रिपाठी को विजय मिली.
छठवीं विधानसभा के चुनाव में पंडित कमलापति त्रिपाठी इस सीट से चुनाव नहीं लड़े और उनकी जगह उतरे कांग्रेस के राम नरेश को भारतीय किसान दल के उम्मीदवार रामप्यारे तिवारी ने हरा दिया. सातवीं विधानसभा के चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार के रुप में रामप्यारे तिवारी को जीत मिल गई. आठवीं विधानसभा में चंदौली की सीट सुरक्षित हो गई और इस सीट पर कांग्रेस (आई) के संकठा प्रसाद शास्त्री ने श्यामदेव (कांग्रेस यू) को हरा दिया.
इसके बाद 1985 में नौंवीं विधानसभा के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस (आई) के संकठा प्रसाद शास्त्री ने जनता पार्टी के रामलाल को 23,672 वोटों से हराया था. दसवीं विधानसभा में जनता दल के छन्नू लाल ने कांग्रेस के संकठा प्रसाद शास्त्री को हरा दिया. वहीं, 1991 के 11वीं विधानसभा चुनाव में भाजपा के शिवपूजन राम ने पहली बार अपना परचम लहराया और दीनानाथ भाष्कर को मात्र 238 वोटों से हराया था.
1993 में 12वीं विधानसभा चुनाव में दीनानाथ भाष्कर ने अपनी हार का बदला लेते हुए भाजपा के रामजी गोंड को वोटों से हराया. 13वीं विधानसभा के चुनाव में भाजपा के शिवपूजन राम ने दोबारा जीत हासिल की. 2002 में जब 14वीं विधानसभा का चुनाव हुआ तो बसपा के शारदा प्रसाद ने सपा के राम उजागिर गोंड़ को हराकर जीत हासिल की.
2007 में शारदा प्रसाद ने एक बार फिर सपा के राम उजागिर गोंड़ को 8,506 वोटों से हराकर जीत दर्ज की. 2012 में इस सीट का नाम बदल कर सैयदराजा (382) कर दिया गया और यह सीट सामान्य हो गई. इस सीट से निर्दल प्रत्याशी मनोज सिंह डब्लू ने जेल से चुनाव लड़ रहे और माफिया डॉन बृजेश सिंह को हराया. लेकिन 2017 के चुनाव में बृजेश सिंह के भतीजे सुशील सिंह ने अपने चाचा की हार का बदला लिया और सैयदराजा विधानसभा की सीट पर कब्जा जमा लिया.