उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

चन्दौली के कैलाश सत्यार्थी बने दुर्गेश, जानिए कैसे अमीरों के दुर्ग से गरीबों में बांट रहे खुशी

चंदौली के कैलाश सत्यार्थी कहे जाने वाले दुर्गेश अमीरों के दुर्ग से गरीबों में मुस्कान बिखेरने का काम कर रहे हैं. वे भिक्षाटन के जरिए धनराशि एकत्र करते हैं और इस राशि से गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं.

By

Published : Nov 7, 2020, 4:42 PM IST

चन्दौली के कैलाश सत्यार्थी.
चन्दौली के कैलाश सत्यार्थी.

चन्दौली:कहते हैं कि दूसरों की मदद करके इंसान को जो सुख शांति और समृद्धि प्राप्त होती है, वह कहीं और नहीं होती. यह पंक्तियां चंदौली के कैलाश सत्यार्थी कहे जाने वाले सच्चिदानंद सिंह 'दुर्गेश' पर सटीक बैठती हैं. दुर्गेश के जीवन पर कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तानी युवा यूसुफजई मलाला को शांति के लिए किए कार्यों का ऐसा असर पड़ा कि वे सत्यार्थी की राह पर निकल पड़े.

'बच्चों के सपनों को मारना सबसे बड़ा अपराध है' नोबेल पुरस्कृत कैलाश सत्यार्थी के इन शब्दों ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया. इसके बाद तमाम सामाजिक, पारिवारिक, कठिनाइयों और दुश्वारियां के बावजूद फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पिछले 6 सालों के इस अभियान में वे भिक्षाटन कर अब तक 11 हजार बच्चों तक अपनी मदद पहुंचा चुके हैं.

देखें वीडियो.
योगी सरकार की इस योजना को दे रहे नया आयामसमाज सेवा के इस क्रम में दुर्गेश योगी सरकार की महत्वकांक्षी योजना मिशन शक्ति को भी नया आयाम देने में जुटे है. इसी के तहत वे महेंद्र टेक्निकल इंटर कॉलेज मैदान पर पहुंचे, यहां उन्होंने एथलीट में रुचि रखने वाले छात्राओं में भिक्षाटन के जरिए धनराशि से खरीदे गए स्पोर्ट्स जूते वितरित किए. उन्होंने कहा कि समाज सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है. नारी शक्ति का भी देश के विकास में अतुलनीय योगदान है. वर्तमान समय में महिलाएं भी पुरुषों से कम नहीं है. वितरण करते हुए उन्होंने कहा कि खेल प्रतियोगिता में आप सभी बढ़-चढ़कर हिस्सा लें और देश का नाम रोशन करें.
भिक्षाटन कर गरीबों की मदद करते हैं दुर्गेश.
बेहतर प्रदर्शन के माध्यम से देंगी रिटर्न गिफ्टमहेंद्र टेक्निकल इंटर कॉलेज की एथलीट छात्राओं ने भी समाजसेवी दुर्गेश की तरफ से मिले शूज पर उनका आभार जताया. एथलीट शिवानी व खिलाड़ियों ने कहा यह शूज उन्हें सदैव बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित करेगा और एक नया उत्साह भरेगा. यही नहीं हम सभी उन्हें अच्छे खेल प्रदर्शन के माध्यम से रिटर्न गिफ्ट देंगे. इस दौरान कालेज के तमाम शिक्षकों ने भी उनके प्रयासों को सराहा.
छात्राओं ने कही रिटर्न गिफ्ट देने की बात.
परिषदीय विद्यालय से पढ़ाई फिर बाल अधिकारों की लड़ाईसमाजसेवी सच्चिदानंद सिंह 'दुर्गेश' आवाजापुर निवासी संकटा सिंह के तीन पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र हैं. उन्होंने गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से शिक्षा अर्जित की. वाराणसी से इंटर तक की परीक्षा और फिर सकलडीहा पीजी कॉलेज से स्नातक की शिक्षा ली. इसके बाद वाराणसी के निजी फर्म में काम करने लगे, लेकिन 2014 में कैलाश सत्यार्थी और यूसुफजई मलाला को मिले नोबेल पुरस्कार कार्यक्रम ने इनके जीवन चरित्र पर ऐसा प्रकाश डाला, कि सब कुछ छोड़ छाड़ बाल अधिकारों के लिए लड़ाई में जुट गए.
भिक्षाटन कर जुटाते हैं रुपये.
11 हजार बच्चों तक पहुंचाई है मदददुर्गेश बाल अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले सोशल वर्कर कैलाश सत्यार्थी की छाप लिए कंधे पर झोला लटकाया और समाज सेवा की कठिन डगर पर चल दिए. चट्टी-चौराहा, कस्बा, बाजारों, रेलवे स्टेशन पर भिक्षाटन करने लगे. इससे अर्जित धन से परिषदीय विद्यालयों के गरीब बच्चों में कॉपी किताब कलम बांटना शुरू कर दिया. हौसला ऐसा बढ़ा की भिक्षाटन करना ही उनकी दिनचर्या बन गई, और अपने इस भिक्षाटन से अब तक वे जिले के 11 हजार से ज्यादा बच्चों को पठन-पाठन की सामग्री के अलावा ड्रेस जूता-मोजा व खाद्य सामग्रियों का वितरण कर चुके हैं. लॉक डाउन के दौरान भी गरीबों में खाद्य सामग्री का वितरण कर रही है.
एथलीट छात्राओं को शूज वितरित करते दुर्गेश.
शुरुआती दिनों में उड़ाया गया उपहासदुर्गेश सिंह पिछले 6 वर्षों से इस कार्य में लगे हुए हैं. उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में जब भिक्षाटन कर गरीबों असहाय बच्चों की मदद की तो उनका काफी उपहास हुआ. यहां तक कि लोगों ने उन्हें पागल करार देकर उनके मानसिक इलाज कराने की सलाह भी दी. परिवार के लोगों ने भी साथ देने से इनकार कर दिया, लेकिन उनके हौसले पस्त नहीं हुए.
चन्दौली के कैलाश सत्यार्थी.
पत्नी छोड़कर चली गई मायकेदुर्गेश के इस कदम से उनकी वैवाहिक जीवन की गाड़ी भी पटरी से उतर गई. पत्नी भी घर छोड़कर मायके चली गई. हालांकि बाद में जब उन्हें इस रास्ते में सफलता मिलनी शुरू हुई. समाज और स्थानीय प्रशासन की ओर से इस कार्य के लिए सम्मानित किया जाने लगा तो घर परिवार में भी सब कुछ सामान्य हो गया. 3 साल बाद उनकी पत्नी मायके से घर लौट आई. वहीं पिता ने भी अपने दृढ़ इच्छाशक्ति रखने वाले बेटे को गले लगा लिया.

महामना से मिली भिक्षाटन की सीख
समाजसेवी दुर्गेश सिंह ने बताया कि जिस प्रकार महामना मदन मोहन मालवीय जी ने भिक्षाटन कर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का स्थापना किया था. उसी प्रकार वह भी भिक्षाटन का रास्ता अपनाकर गरीब व असहाय बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. साथ ही कैलास सत्यार्थी और मलाला से दूसरों के बीच कार्य करने की हौसला की सीख मिलती है. यह सभी लोग उनके प्रेरणास्रोत हैं. जो उनके इस मुहिम से आगे बढ़ाने में मदद देते है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details