मुरादाबाद: मन में कुछ करने का जज्बा हो तो कोई राह मुश्किल नहीं होती. जी हां ऐसा ही कुछ कर दिखाया है मुरादाबाद में रहने वाली शायरा ने. मुरादाबाद के बिलारी तहसील की रहने वाली शायरा ने खुद के परिवार की बेहतरी के लिए सिलाई का काम शुरू किया और आज वह अपने आसपास रहने वाली 50 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे रही हैं.
टोपियों के सहारे गरीब महिलाओं की तकदीर बदल रहीं शायरा. डिमांड में गांधी टोपी
शायरा अपनी टीम के साथ हर रोज तरह-तरह की टोपियां बनाती हैं, जिसे देश के साथ विदेशों में भी खूब पसंद किया जा रहा है. गणतंत्र दिवस और दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर शायरा की बनाई गांधी टोपी डिमांड में है और आजकल हर रोज 20 से 25 हजार टोपियां बनाकर दिल्ली भेजी जा रही हैं. शायरा के इस प्रयास से गरीब घरों की महिलाएं भी रोजगार जुटा रही हैं.
विदेशों में भी जाती है शायरा की टोपीमुरादाबाद जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर बिलारी तहसील के सहसपुर की रहने वाली शायरा अपने हुनर के चलते चर्चाओं में हैं. अपने परिवार के साथ रह रही शायरा गरीब परिवारों की महिलाओं को लेकर अपना एक समूह चला रही हैं, जो हर रोज अलग-अलग प्रकार की टोपियां तैयार करता है. पांच साल पहले समूह की शुरुआत कर शायरा ने टोपियां बनाने का काम शुरू किया, लेकिन मार्केटिंग न होने के चलते काम में नुकसान हो गया. इसे भी पढ़ें -नो टू सिंगल यूज प्लास्टिक : अपनी कोशिशों से प्लास्टिक मुक्त बन रहे हैं झारखंड के गांव
कुछ महीने पहले आपस में पैसे जमा कर शायरा और उनकी टीम ने दोबारा टोपियां बनानी शुरू की और आज इस काम से इनको अच्छी आमदनी हो रही है. शायरा की टोपियां देश के कई राज्यों के साथ विदेशों में भी भेजी जा रही है, जहां लोग इन्हें खूब पसंद कर रहे हैं.
टोपी की सिलाई करती महिलाएं. हर रोज बनाती हैं 20 हजार टोपी
सहसपुर के एक छोटे से मकान के बरामदे में सिलाई मशीनों पर हर रोज कई महिलाएं टोपियां बनाने में जुटी रहती हैं. इसके साथ ही कई महिलाएं शायरा से काम लेकर अपने घरों में टोपियां तैयार करती हैं. समूह की महिला सदस्य हर रोज 20 हजार टोपियां बनाती हैं. गणतंत्र दिवस और दिल्ली चुनावों को लेकर गांधी टोपी ज्यादा डिमांड में है, लिहाजा आजकल यही टोपियां तैयार की जा रही हैं. सिंगल फोल्ड वाली गांधी टोपी की कीमत तीन से चार रुपये होती है, जबकि डबल फोल्ड वाली टोपी सात रुपये तक बिक जाती है. यहां काम करने वाली महिलाएं तैयार टोपियों के हिसाब से भुगतान लेती हैं.
परिवार चलाने में भी मिलती है मदद
शायरा के इस समूह में कई महिलाएं ऐसी भी हैं, जो गरीब परिवारों से आती हैं और परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर ही है. यहां कई स्कूली छात्राएं भी खाली समय में काम कर अपने परिवार की मदद करती हैं. शायरा की बनाई टोपियां दिल्ली से लेकर उत्तराखंड और अन्य राज्यों के साथ नेपाल, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया में भी भेजी जा रही हैं. हथकरघा उद्योग के लिए पहले से मशहूर सहसपुर कस्बे के लिए शायरा की टोपियां नई पहचान बनकर उभरी हैं और भविष्य में शायरा इसे बड़े पैमाने पर शुरू कर ज्यादा महिलाओं को रोजगार देने में जुटी हैं.