मुरादाबाद: भारत के इतिहास में बहुत सी पुरानी धरोहर है और इन धरोहरों का इतिहास किसी न किसी किताब में पढ़ने को मिल जाएगा, लेकिन इन धरोहरों को हम संजोकर नहीं रख पा रहे हैं. ऐसी एक धरोहर है सती मठ, जहां बहुत सालों पहले महिलाएं अपने पति के साथ चिता में सती हो जाती थीं. आज भी इन मठों से सती हुई महिलाओं की अस्तियां मिल रही हैं. वहीं इब्नबतूता की किताब सफरनामा में इस बात का जिक्र किया गया है.
जिले की नगर पंचायत अगवानपुर, जिसका इतिहास बहुत पुराना है. अगवानपुर का नाम मुगलों ने बदलकर मुगलपुर कर दिया था, लेकिन मुगलों के जाने के बाद अगवानपुर फिर से अपने नाम से जाने जाने लगा. सन 1963 में मिश्र से एक युवक इब्नबतूता जब 18 साल की उम्र में दुनिया का चक्कर लगाते हुए भारत आया तो कुछ समय अगवानपुर में भी रुका था.
अगवानपुर का सती मठ खो रहा अपना अस्तित्व. भारत भ्रमण के बाद इब्नबतूता ने एक किताब लिखी, जिसका नाम सफरनामा इब्नबतूता है. इस किताब में अगवानपुर के इतिहास का जिक्र किया गया है. इसी के आधार पर एक किताब मुरादाबाद तारीखे जद्दोजहद आजादी में भी जिक्र किया गया. इस किताब में बताया कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अगवानपुर आकर रुके थे. वहीं जिन महिलाओं के पति की मृत्यु हो जाती थी, वह महिलाएं अपने पति के साथ यहीं सती हो जाती थीं.
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सती मठ के पास ही रामगंगा नदी में सभी रानी पांच सौ पालकियों में सवार होकर स्नान करने जाती थी. यह स्थान जिले से दस किलोमीटर दूर है. रामगंगा नदी किनारे तीन सती मठ आज भी मौजूद है. सदियों पुराने होने की वजह से भले ही यह मठ टूट गए है, लेकिन इन मठो के नीचे से आज भी महिलाओं की अस्थियां निकलती है. मठो के टूट जाने की वजह से और पुरानी होने की वजह से स्थानीय लोगों ने इन मठो का निर्माण करा दिया है. वहीं शासन-प्रशासन की तरफ से पुरानी धरोहर को संजोकर रखने के लिए आज तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है.
मठों की देखभाल करने वाले वीररबल चंद्रा ने बताया कि यहां तीन सती मठ हैं जो कुछ साल पहले टूट गए थे, जिनका निर्माण कराया जा रहा है. सती मठ टूटने के बाद इनके नीचे से अस्थियां, नांद और कोयले निकले हैं. यह मठ कितने पुराने हैं, इसकी पूरी तरीके से जानकारी नहीं. 65 साल से हम इन्हें देखते आ रहे हैं और इसका जिक्र बुजुर्ग भी किया करते थे.
जिले के तारीखे जद्दोजहद आजादी किताब रखने वाले हफीज नवाब अली ने बताया कि कस्बा मुगलपुर उर्फ अगवानपुर के नाम से मशहूर है. यहां पुराने जमाने की सती मठ है और यह जगह जेवर खास के नाम से मशहूर है. 1963 में मिस्र का रहने वाला इब्नबतूता ने अपनी सफरनामा इब्नबतूता में इसकी जिक्र किया गया है.