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मुरादाबाद: 'सब पढ़ें-सब बढ़ें' स्लोगन को मुंह चिढ़ाता यह जर्जर स्कूल

पीतल नगरी के नाम से दुनिया में मशहूर यह जनपद हर साल करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा में कारोबार करता है. बुनियादी सुविधाएं आज भी इस शहर की सबसे बड़ी समस्या है.

जर्जर स्कूल में पढ़ाई करते छात्र.

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Published : Aug 3, 2019, 7:43 PM IST

मुरादाबादःजिले के उड़पुरा में स्थित प्राथमिक विद्यालय के हालात खराब हैं. स्कूल जर्जर अवस्था में है. इसमें पढ़ने वाले बच्चों के सिर पर खतरा हर वक्त मंडराता रहता है. यहां तपती गर्मी में पढ़ाई और बरसात होते ही स्कूल से छुट्टी हो जाती है. यह स्कूल शिक्षा विभाग के दावों को आइना दिखाता है. हैरानी की बात यह कि जनपद मुख्यालय में स्थित इस स्कूल में न तो शौचालय है और न ही अन्य सुविधाएं. बावजूद इसके शिक्षा विभाग के अधिकारी कुम्भकर्णी नींद में सोए हुए हैं.

तपती गर्मी में बच्चे करते हैं पढ़ाईः
तपती गर्मी में स्कूल के बरामदे में पसीने से नहाई शमीमा हर रोज स्कूल पहुंचती है. कक्षा दो की छात्रा शमीमा बरसात से परेशान एक दादी मां की कहानी पड़ रही है. लेकिन यह कहानी शमीमा से ज्यादा बेहतर भला कौन समझ सकता है. पचास साल पुराने जर्जर भवन के दो कमरों में चल रहा शमीमा का स्कूल अपनी बदहाली की कहानी सालों से कह रहा है. स्कूल में छात्र- छात्राओं के लिए शौचालय नहीं है और न ही स्कूल में बिजली का कनेक्शन है. भीषण गर्मी में कमरों में होने वाली उमस से बचने के लिए बरामदे में बच्चों को पढ़ना पड़ता है और बरसात के वक्त बिल्डिंग से पानी टपकता है लिहाजा छुट्टी करना मजबूरी बन जाती है.

प्राथमिक विद्यालय का हाल.

जर्जर हालात में स्कूलः
शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक स्कूल में गरीब परिवारों के पचास बच्चे पढ़ाई करते है. लेकिन असल में बच्चे यहां पढ़ाई जैसा कुछ भी नहीं है. बच्चे पड़ोस के घरों के शौचालय का इस्तेमाल कर जैसे-तैसे काम चला रहे हैं. स्कूल में तैनात तीन अध्यापक भी स्कूल को शिफ्ट करने की गुहार अधिकारियों से लगा चुके है. लेकिन, अधिकारी मौन हैं. शिक्षा विभाग के अधिकारियों की नाक के नीचे अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहें इस स्कूल के दिन कब सुधरेंगे इसका जवाब किसी के पास नहीं है. जिम्मेदार खामोश हैं.

कैसे संवरेगा बच्चों का भविष्यः
सर्व शिक्षा अभियान का स्लोगन 'सब पढ़े सब बढ़े' उद्देश्य कैसे पूरा होगा. जब स्कूल में शौचालय, फनीर्चर, किचन, बिजली कुछ भी नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि शमीमा जैसी बच्चियां भला कैसे अपने सपनों को पंख लगा पाएंगी. और पीतल नगरी कब तक ऐसे स्कूलों के जरिये दुनिया में अपना नाम रोशन करने का मुगालता पाले रहेगी?

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