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हम दिव्यांग हैं बेचारे नहीं, परिवार का मिले साथ तो कर सकते हैं कुछ खास - रुचि चतुर्वेदी बचपन से ही पोलियो की बीमारी से ग्रसित

यूपी के मुरादाबाद की रहने वाली रुचि चतुर्वेदी बचपन से ही पोलियो की बीमारी से ग्रसित हैं. बैसाखियों के सहारे अपनी जिंदगी के सफर को तय कर रहीं रुचि के सपने ऊंचे हैं और वह अपने जैसे लोगों को नई राह दिखा रही हैं.

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दिव्यांगों को जीने का हौसला सीखा रहीं रुचि

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Published : Dec 4, 2019, 3:54 AM IST

मुरादाबाद: इंसान के मन में कुछ करने का जज्बा हो तो कोई राह मुश्किल नहीं होती. शारीरिक चुनौतियां जीवन के सफर में इम्तहान तो कड़ा लेती है लेकिन खुद पर भरोसा हो तो मंजिल तक पहुंचने में बाधा नहीं बनती. जी हां कुछ ऐसी ही दास्तां है मुरादाबाद की रहने वाली रुचि चतुर्वेदी की. बचपन में पोलियो की बीमारी के चलते मुश्किल में आई रुचि आज अपने पैरों पर खड़ी हैं.

दिव्यांगों को जीने का हौसला सीखा रहीं रुचि.

शारीरिक दिव्यांगता भी नहीं रोक सकी रुचि को
जनपद के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में रहने वाली रुचि हर रोज अपनी जिंदगी उसी तरह शुरू करती है, जैसे एक स्वस्थ्य इंसान की दिनचर्या होती है. रेलवे कॉलोनी में रहने वाली रुचि दिव्यांग हैं और बैसाखियों के सहारे ही चल पाती हैं. रुचि पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहीं और एमए के साथ एलएलबी की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं.

महज ढाई महीने की उम्र में रुचि को पोलियो वायरस के चलते शारीरिक दिव्यांगता से जूझना पड़ा, लेकिन बीमारी की मार से निराश होने के बजाय रुचि ने अपने जीवन को एक लक्ष्य दिया.

परिजनों के सहयोग से रुचि धीरे-धीरे अपनी मंजिल की तरफ बढ़ती गईं और आज वह समाजसेवा से लेकर कारोबार तक अपनी पहचान बना रही हैं.

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दिव्यांग लोगों के लिए खोलना चाहती हैं स्कूल

रेलवे कॉलोनी में रुचि ने परिजनों के सहयोग से एक बुटीक खोला है जिसके जरिये वह आम लोगों को भी एक सन्देश देती नजर आती हैं. हर रोज सुबह से शाम तक बुटीक पर बैठने के साथ ही रुचि भविष्य में दिव्यांग लोगों के लिए एक स्कूल खोलने का विचार बना रही हैं.

रुचि के मुताबिक शारीरिक विकलांगता के सामने हार मानने से जीवन नीरस हो सकता है, लिहाजा उन्होंने खुद को उसी तौर पर स्वीकार किया जैसी वह थीं.

परिजनों का मिला साथ

रुचि को उसके पैरों पर खड़ा होने के लिए परिवार ने भी हरसंभव मदद की. रुचि के चाचा के मुताबिक उन्होंने कभी भी रुचि को अकेले होने का अहसास नहीं कराया और हर वक्त भरोसा दिलाया कि वह अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी सकती है.

रुचि की दास्तां उन हजारों दिव्यांगों के लिए प्रेरणा है जो शारीरिक चुनौती के आगे घुटने टेक देते हैं. खुद पर भरोसा कर रुचि ने साबित कर दिया की मजबूत इरादों और इच्छा शक्ति के साथ जीवन जीने की ठान ली जाय तो हर राह आसान है.

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