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मुरादाबाद: फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को सबक सिखाएंगे मित्र कीट

मुरादाबाद के कृषि प्रयोगशाला में बायोपेस्टिसाइड के तहत मित्र कीट का निर्माण जैविक खेती को बढ़ावा देने में किया जा रहा है. मित्र कीट ट्राइकोग्रामा को तैयार कर किसानों तक पहुंचाया जा रहा है.

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Published : Jun 28, 2020, 11:42 AM IST

मित्र कीट से शत्रु कीटों का सफाया.
मित्र कीट से शत्रु कीटों का सफाया.

मुरादाबाद:जैविक खेती के दौर में एक बार फिर किसानों की फसल को हानिकारक कीटों से बचाने के लिए मित्र कीटों की मदद ली जा रही है. जनपद मुरादाबाद के कृषि विभाग की प्रयोगशाला में मित्र कीट ट्राइकोग्रामा को तैयार कर किसानों तक पहुंचाया जा रहा है.

मुरादाबाद के कृषि प्रयोगशाला में बायोपेस्टिसाइड के तहत मित्र कीट का निर्माण जैविक खेती को बढ़ावा देने में किया जा रहा है. मंडल के 5 जनपदों के अलावा बुलंदशहर और हापुड़ के किसानों की जरूरत के तहत प्रयोगशाला में बायोपेस्टिसाइड तैयार किया जाता है. खेती में इस्तेमाल होने के लिए ट्राइकोग्रामा और ट्राइकोडरमा बायो पेस्टीसाइड तैयार किए जा रहे हैं. ट्राइकोग्रामा एक मित्र कीट है. जिसको प्रयोगशाला में सहायक वातावरण देकर इसके अंडों को तैयार किया जाता है. ट्राइकोग्रामा दुश्मन कीटों के अंडों से भ्रूण खाकर इन अंडों के अंदर अपने अंडे देकर अपनी संख्या कई गुना बढ़ा लेता है. अब आईए जानते हैं कृषि लैब में कैसे तैयार होते हैं मित्र कीट-

मित्र कीट बचाएंगे फसलों को.
मित्र कीट ट्राइकोग्रामा को तैयार करने की विधि
मुरादाबाद के कृषि प्रयोगशाला में सबसे पहले धान को नुकसान पहुंचाने वाले कीट कॉर्सेरा को पकड़ कर लाया जाता है. औसतन 25 डिग्री तापमान पर कॉर्सेरा कीट की संख्या को बढ़ाया जाता है. जिसके बाद इसके अंडों को जमा किया जाता है. अंडे जमा होने के बाद इनको मशीन में अल्ट्रावायलेट किरणों के जरिए स्टेलाइज कर अंडों के अंदर के भूर्ण को मार दिया जाता है. अब इन अंडों को ट्राइकोग्रामा कीट के साथ रख दिया जाता है. इसके बाद ट्राइकोग्रामा इन अंडों में मौजूद भ्रूण को खा जाता है और खाली अंडों के अंदर अपने अंडे छोड़ जाता है. इस तरह शत्रु कीट के अंडों से ही ट्राइकोगामा अपनी संख्या बढ़ाता है. ट्राइकोग्रामा के तैयार अंडों को एक पेपर पर लगाया जाता है. इसके बाद इसे किसान अपने खेत में छोड़ देते हैं.
ट्राइकोग्रामा के काम करने का तरीका
मित्र कीट ट्राइकोग्रामा खुद के प्रजनन के लिए अंडे का निर्माण नहीं करता है, बल्कि यह दुश्मन कीट के अंडों में ही अपने अंडे देता है. ट्राइकोग्रामा इसी तरह किसानों की मदद करता है. यह खेत में मौजूद सब्जियों, गेंहू, गन्ना, अरहर, धान मक्का जैसी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों से खुद ही निपट सकता है. आकार में बहुत छोटा यह मित्र कीट सबसे पहले दुश्मन कीटों के अंडों की तलाश करता है. उसके बाद अंडों के अंदर मौजूद भ्रूण को अपना आहार बनाता है. शत्रु कीट के अंदर अपने अंडे देकर कम दिनों में ही अपनी संख्या कई गुना बढ़ा लेता है.

किसान हो रहे जागरूक
कृषि विभाग में उप निदेशक सीएल यादव का कहना है कि मित्र कीटों को लेकर किसान जागरूक हो रहें है. जनपद मुरादाबाद के किसान जैविक खेती के लिए इन कीटों का इस्तेमाल कर रहे हैं. रासायनिक कीटनाशकों के मुकाबले इनके फायदे ज्यादा हैं, लिहाजा आने वाले समय में इन कीटों की मांग बढ़नी तय है. मित्र कीटों की कई प्रजातियां दुनिया में मौजूद हैं. लेकिन स्थानीय वातावरण के हिसाब से ट्राइकोग्रामा यहां सबसे ज्यादा प्रभावी है.

75 फीसदी सब्सिडी के साथ कराया जा रहा उपलब्ध
उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग की 9 प्रयोगशालाओं में इस तरह के मित्र कीटों और बायोपेस्टिसाइड किसानों को 75 फीसदी सब्सिडी के साथ उपलब्ध कराया जा रहा है. गन्ना बेल्ट होने के चलते गन्ने की फसल को बर्बाद करने वाले कीटों पर ट्राइकोग्रामा काफी प्रभावी है. रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से जमीन को हो रहे नुकसान के बाद किसान धीरे-धीरे जागरूक होकर मित्र कीटों को अपना रहे हैं. जो आने वाले समय में पर्यावरण को भी शुद्ध रखने में मदद करेगा.

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