मुरादाबाद: जिले की रामलीला शैली की अपनी एक पहचान है, लेकिन कोरोना के चलते रामलीला का आयोजन शायद ही हो पाए. मुरादाबाद के कलाकार हर साल दिल्ली, मुंबई, हरियाणा जैसे राज्यों में रामलीला का मंचन कर अपनी छाप छोड़ते हैं. कोरोना काल में रामलीला आयोजन के ज्यादातर कार्यक्रम स्थगित हो चुके हैं. ऐसे में हजारों कलाकार मायूस बैठे हैं.
मुरादाबाद का पीतल दुनिया में अपनी चमक दिखाता है, लेकिन कारोबार के साथ इस शहर का रिश्ता सांस्कृतिक आयोजनों से भी है. मुरादाबाद शैली की रामलीला पूरे देश में मशहूर है. रामलीला की इस शैली में काव्य की जगह गद्य को प्राथमिकता दी जाती है. अभिनय के संवाद पर्दे के पीछे से बोले जाते हैं. मंच पर कलाकार सिर्फ अभिनय करता नजर आता है.
इस शैली से मुरादाबाद की रामलीला ने 1966 से आज तक अपनी अलग पहचान बनाई है. दिल्ली के रामलीला मैदान से लेकर मुंबई, हरियाणा से लेकर मध्य प्रदेश तक मुरादाबाद की रामलीला टीमें हर साल बुलाई जाती हैं. शहर में चालीस से पचास रामलीला कमेटियां हैं. कमेटियों में दो से ढाई हजार कलाकार जुड़े हैं. रामलीला के शुरुआती दौर से आज तक अभिनय कर रहे प्रदीप शर्मा के मुताबिक जीवन में पहली बार इस साल वह किसी आयोजन में शिरकत नहीं कर रहे हैं.
जानकारी देते रामलीला के कलाकार. मेकअप आर्टिस्ट राहुल के मुताबिक कोरोना के चलते रामलीलाओं का आयोजन नहीं होने से स्थानीय कलाकार भी काफी मायूस हैं. कलाकारों को अभी भी उम्मीद है कि शायद सरकार नियमों में कुछ ढील देकर रामलीला का आयोजन करवा दे. रामलीला के कलाकारों का अभिनय करने वाले ज्यादातर युवा कलाकार आज भी घरों में रियाज कर खुद को तैयार कर रहे हैं. मुरादाबाद में रामलीला मंचन का हिस्सा बनने वाले ज्यादातर कलाकार सिर्फ रामलीला में ही अभिनय करते हैं.
कलाकार शिवानी ने बताया कि दशहरे के मौके पर हर साल रामलीला कलाकारों की टीम आयोजन से दस दिन पहले रवाना हो जाती थी. इस दौरान मंच सज्जा से लेकर तमाम अन्य कार्य पूरे किए जाते थे. दिल्ली में होने वाली रामलीला के आयोजन में देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी पहुंचकर इन कलाकारों का हौसला बढ़ाते थे. रामलीला में वॉइस ओवर करने वाले राजदीप के मुताबिक कोरोना के चलते कलाकारों की आमदनी प्रभावित तो हुई है, लेकिन उससे ज्यादा नुकसान अभिनय न करने से हुआ है.