मुरादाबाद: विकास के अंधाधुंध आयामों ने खेती करने के लिए क्षेत्रफल को लगातार कम करने का काम किया है. पैसे कमाने की होड़ ने खेती-किसानी को एक वर्ग तक सिकोड़ कर रख दिया है. जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण जहां अधिक पैदावार के लिए केमिकल प्रेस्टिसाइट का प्रयोग बढ़ा है. वहीं आम लोगों में खान-पान की समस्याएं भी पैदा हो रही हैं.
बेतहाशा पैसे खर्च करने के बाद ही खाने में शुद्धता की गारंटी मिल पा रही है. इन्हीं चीजों से निजात दिलाने के लिए 'अर्बन फार्मिंग' यानी शहरों में खेती के कॉन्सेप्ट को आगे बढ़ाया जा रहा है. इस विचार के जरिए छतों, बालकनी, दीवारों और अन्य जगहों पर छोटे-छोटे बॉक्सेज, गमलों व अन्य चीजों के जरिए थोड़ी-थोड़ी जगह में जैविक खेती को बल दिया जा रहा है. इससे छोटे परिवार की जरूरत की सब्जियां, फल इत्यादि रोजाना प्राप्त हो सकती हैं. इस तरह अर्बन फॉर्मर अपने छत या बालकनी पर हरियाली का अनुभव भी ले सकता है.
मुरादाबाद में हो रहा है प्रयोग
जिले में कुछ इसी तरह की खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार रिसर्च किया जा रहा है. इसके जरिए डॉ. दीपक मेंहदी रत्ता अपने आप में नया कीर्तिमान गढ़ रहे हैं. इन्होंने अपनी प्रयोगशाला के तकरीबन 5000 स्क्वॉयर फीट की छत पर सैकड़ों की संख्या में थर्माकोल के डिब्बे रखे हैं, जिनमें उन्होंने जैविक खादों से मिट्टी तैयार की है. इन डिब्बों में तमाम तरह के फल और सब्जियों को लगाया गया है. इससे न केवल उनके परिवार की रोजमर्रा की आवश्यकताएं पूरी हो रही हैं, बल्कि उनके प्रयोगशाला की छत पर हमेशा हरियाली बनी रहती है.
कहीं भी कर सकते हैं प्रयोग
डॉ. दीपक मेंहदी रत्ता ने बताया कि अर्बन फार्मिंग के लिए घर की छत, घर की दीवारों और बालकनी का प्रयोग कर सकते हैं. इन जगहों पर अर्बन फार्मिंग के तरीकों से कई तरह की सब्जियों और फलों की खेती कर सकते हैं. इनमें आलू, टमाटर, नींबू, एलोवेरा, हरी, मिर्च, गोभी, पत्ता गोभी, बकलोनी और अन्य सब्जियों को उगा सकते हैं. इसके साथ ही घर की छतों पर खूबसूरत फूलों को भी उगाया जा सकता है.
अर्बन फार्मिंग के लिए यह है जरूरी
अर्बन फार्मिंग के तरीकों के बारे में डॉ. दीपक मेहंदी रत्ता बताते हैं कि इस काम में वेस्ट मैटेरियल की ही जरूरत है. जैसे कि वेस्ट हो चुके डिब्बे, थर्माकोल के डिब्बों के सहारे दीवारों, छतों और बालकनी में फार्मिंग की जा सकती है. इसके लिए मिट्टी तैयार करने की विशेष विधि है, जो काफी हल्की होती है. मिट्टी खुद में नमी बरकार रखती है. अर्बन फार्मिंग में मिट्टी तैयार करने के लिए कोकोपिट, वर्मी कंपोस्ट और नीम की खली का इस्तेमाल करना चाहिए, जो बहुत ज्यादा वजनदार भी नहीं होती.
उन्होंने बताया कि जब मिट्टी तैयार हो जाती है तो उसी के अंदर पौध भी तैयार करते हैं और फिर उसे गमलों या डिब्बों में लगा देते हैं. इस तरह से सीजनल सब्जियों और फलों को लोग अपने घरों पर उगा सकते हैं. अर्बन खेती का सबसे बड़ा लाभ यह है कि घर में उगाई जाने वाली सभी सब्जियां पूरी तरह से जैविक होती हैं. उनमें किसी तरह के केमिकल, फर्टिलाइजर का प्रयोग नहीं किया जाता. इस तरह से वे हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हैं.
ट्रेनिंग प्रोग्राम करते हैं संचालन
डॉ. मेंहदी रत्ता बताते हैं कि इस काम के लिए कृषि विभाग और अन्य लोगों के सहयोग से वे ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाते हैं. इससे व्यक्ति अर्बन फार्मिंग सीखकर कम से कम अपने छोटे व संयुक्त परिवार के लिए छोटी या बड़ी मात्रा में सब्जियां व फल उत्पादित कर सकता है. उन्होंने अपनी छत पर लगभग हर तरह की सब्जी और फल लगा रखे हैं, जिसका समय-समय पर उन्हें फायदा मिलता रहता है. उन्होंंने बताया कि खाद का प्रयोग करने के लिए बहुत ज्यादा पानी भी नहीं देना पड़ता है.
फायदेमंद है अर्बन फार्मिंग
विकास का आयाम लगातार बढ़ने से कृषि योग्य जमीनों का दायरा कम होता जा रहा है. ये बातें कहीं न कहीं हमें अर्बन फार्मिंग की ओर प्रेरित कर रही हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि ताजी और हरी सब्जियों को अपने ही घर में ही उगाया जा सकता है. इस तरह से अर्बन फार्मिंग हर छोटे परिवार के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है.
डॉ. मेहंदी रत्ता इस विषय पर भी ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि बड़े-बड़े बिल्डिंग्स में छतें खाली पड़ी रहती हैं. वहां पर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए अर्बन फर्मिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है. इससे नवयुवकों को न केवल रोजगार मिलेगा, बल्कि जैविक खेती के जरिए लोगों को स्वास्थ्यप्रद भोज्य पदार्थ भी उपलब्ध करवा सकेंगे.