मिर्जापुर : शास्त्रों में पितृपक्ष का विशेष महत्व है. माना जाता है कि पितृ पक्ष के समय पूर्वज धरती पर आते हैं इसलिए पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध के साथ दान करने का विधान बताया गया है. पितृ पक्ष के दौरान कोई मांगलिक कार्य नहीं होते इस समय केवल पितरों को याद कर उनका आभार प्रकट किया जाता है.
शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वह प्रसन्न होकर सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं. हर साल पितृपक्ष पर पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है. मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है. अभी तक आप शायद यही जानते होंगे कि शास्त्रों में सिर्फ पुरुषों को ही पिंडदान और तर्पण करने का अधिकार दिया गया है लेकिन मिर्जापुर के विंध्याचल में स्थित सीता कुंड में मातृ नवमी के दिन सिर्फ महिलाएं अपने पितरों का तर्पण करती हैं.
क्या है सीताकुंड की मान्यता
मिर्जापुर जनपद में विंध्य पर्वत पर अष्टभुजा मंदिर के पश्चिम दिशा की ओर सीता कुंड है. मान्यता है कि इसकी स्थापना सीता मां ने की थी. कुंड के समीप सीता मां ने भगवान शिव की भी स्थापना की है. यहीं पर भगवान राम ने माता जानकी के साथ गंगा तट पर अपने पितरों का पिण्डदान किया था. माना जाता है जो भी व्यक्ति अपने पितरों का पिंडदान इस स्थान पर आकर करता है उसे पितरों की कृपा प्राप्त होती है.
धार्मिक जानकारों के मुताबिक 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान राम का अयोध्या में राज्याभिषेक किया गया. इसके बाद भगवान रामचंद्र ने अपने कुल गुरु वशिष्ठजी से पूछा कि अब आगे क्या करना है. इस पर गुरु वशिष्ठ ने बताया कि अब आपको अपने पिता दशरथ का श्राद्ध करना होगा. गुरु की आज्ञा का पालन कर जब भगवान राम प्रयागराज में श्राद्ध करने के बाद गया जा रहे थे तभी विंध्य पर्वत पहुंचने पर उन्हें लगा कि यहां भी श्राद्ध करना चाहिए. भगवान श्रीराम, मां सीता को वहीं रुकने को कहकर एक अच्छे स्थान की खोज में निकल गए. प्रभु राम की अनुपस्थिति में सीता मां को प्यास लगी तो उन्होंने अपने स्मरण से एक कुंड का निर्माण किया. इस दौरान वहां पितृगण आते हैं और कहते हैं कि बेटी आपका भी श्राद्ध संस्कार में अधिकार है. तब सीता माता ने इसी कुंड पर स्नान कर पितरों का तर्पण किया. इस जगह को सीता कुंड के नाम से जाना जाता है.