मिर्जापुर: कोरोना वायरस के कारण देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पीएम मोदी की अपील के बाद गांव की महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन रही हैं. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की ड्रेस सिल रही हैं.
इन समूहों में काम करने वाली महिलाएं एक दिन में कम से कम चार ड्रेस सिल लेती हैं, जिससे महीने में इन महिलाओं की अच्छी खासी कमाई भी हो जाती है और वे आत्मनिर्भर भी हो रही हैं. यह महिलाएं लोकल को वोकल बनाने के लिए प्रधानमंत्री के साथ जी-जान से लगी हैं. प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि इन महिलाओं की बनाई गई ड्रेस की ब्रांडिंग भी की जाएगी. इससे महिलाओं की जहां कमाई हो जा रही है, वहीं बच्चों को फिटिंग वाली ड्रेस भी मिल सकेंगी.
बनाई जानी हैं तीन लाख 17 हजार स्कूली ड्रेस
इस बारे में सीडीओ ने बताया कि जनपद में करीब 2200 प्राइमरी और उच्च प्राइमरी स्कूल हैं. इनमें तीन लाख 17 हजार ड्रेस बनाकर एक से आठ तक के पढ़ने वाले सभी छात्र-छात्राओं को उपलब्ध करानी हैं. अब तक यह ड्रेस दिल्ली, कानपुर और लुधियाना के कारोबारी सप्लाई करते थे, लेकिन अब जनपद के बच्चे जनपद के बने कपड़े पहनेंगे. वहीं सीडीओ का यह भी कहना है कि अगर यह महिलाएं ऐसे ही काम करती रहीं तो यहां की सिली हुई ड्रेस प्रदेश भर में सप्लाई की जाएगी.
बनाई जानी हैं तीन लाख 17 हजार स्कूली ड्रेस. आत्मनिर्भरता के बिना महिला सशक्तिकरण की कल्पना नहीं
आत्मनिर्भरता के बिना महिला सशक्तिकरण की कल्पना नहीं की जा सकती. महिला सशक्तिकरण के लिए महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना ही पड़ेगा. मिर्जापुर में सरकार ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास कर रही है. इससे महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ रहा है और वह आत्मनिर्भर बनकर परिस्थितियों से मुकाबला कर रही हैं. पहले जो महिलाएं घर से बाहर नहीं निकलती थी, अब वह स्वयं सहायता समूह से जुड़कर रोजगारपरक कामों में लगी हैं.
सिलाई के काम में लगी महिलाएं. 87,000 महिलाएं जुड़ी हैं स्वयं सहायता समूहों से
जिले में लगभग 87,000 महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं जो अलग-अलग काम कर रही हैं. इसी में से 700 महिलाएं इस समय बेसिक शिक्षा स्कूल के बच्चों की ड्रेस सिल रही हैं. इसके लिए इन्हें ट्रेनिंग भी दी गई है. इन्हें एक ड्रेस बनाने पर 110 रुपये मिलते हैं. एक समूह में 10 से 12 महिलाएं होती हैं. इस तरह से महीने में एक महिला की घर बैठे लगभग 10,000 रुपये की कमाई हो जाती है. इन महिलाओं के अलग-अलग समूह बनाए गए हैं. पहले दो जून की रोटी के लिए इन महिलाओं को संघर्ष करना पड़ता था, लेकिन आज समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर वह आत्मनिर्भरता के साथ जीवन यापन कर रही हैं. इतना ही नहीं कई महिलाएं तो घर भी चला रही हैं.
आत्मनिर्भर बनकर चला रहीं घर का खर्चा
मिर्जापुर के जागृति प्रेरणा संकुल संघ गैपुरा सेंटर पर राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह की कई महिलाएं काम कर रही हैं. यहां अंबेडकर समूह की महिला सरोज का कहना है कि पहले हम लोग बेरोजगार थे. घर पर ही रहते थे. अब सरकार ने मौका दिया है जिसके बाद हम लोग आत्मनिर्भर बनकर घर का खर्चा चला रहे हैं.
बच्चों को भी मिल रही फिटिंग की ड्रेस
इन महिलाओं ने बताया कि इस काम से वे एक दिन में 400 रुपये की कमाई कर लेती हैं. इसके साथ ही इससे बच्चों को फिटिंग की ड्रेस मिल रही है. ये महिलाएं बच्चों की नाप लेकर ड्रेस की सिलाई कर रही हैं. वहीं रेशमा ने बताया कि लॉकडाउन के कारण पापा काम नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन वह यहां काम करके अपने परिवार की मदद कर रही हैं.
सरकार की पहल ने बदली जिंदगी
21 अप्रैल 2015 में सितारा आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी आलिया का कहना है कि सरकार की इस पहल के बाद इनकी जिंदगी बदल गई है. इनका कहना है कि वह स्कूली बच्चों की ड्रेस सिल रही हैं. इस समय देश में लॉकडाउन चल रहा है, घर वाले बैठे हैं कोई काम नहीं है. इसी सिलाई से वह घर का खर्चा चला रही हैं.
इन महिलाओं का कहना है कि इस पहल के बाद वह भी खुश हैं और उनके घर वाले भी खुश हैं. महिलाओं ने बताया कि पहले हम लोग घर से बाहर नहीं निकलते थे, जबसे समूह से जुड़े हैं घर से बाहर निकलने लगे. हर चीज की जानकारी भी हो गई है. हर चीज हम लोग अपने से कर रहे हैं.