मिर्जापुर:जिले का एक ऐसा गांव जहां आजादी के बाद से आज तक पानी की समस्या का निदान कोई सरकार नहीं कर सकी है. ग्रामीण घर से 2 किलोमीटर दूर पहाड़ के प्राकृतिक जल स्रोत के झरने से पानी भरने को मजबूर हैं. 12 महीने टैंकर से सप्लाई के बावजूद भी पानी कम पड़ने पर झरने का ही सहारा लिया जाता है. टैंकर से एक व्यक्ति को हर दिन के हिसाब से 15 लीटर पानी मिलता है, जिसके लिए बकायदा ग्रामीणों का कार्ड बनाया गया है. कार्ड के मुताबिक ही पानी वितरण किया जाता है. तीसरे दिन टैंकर से ग्रामीणों को पानी दिया जाता है. ग्रामीण इस पानी को इकट्ठा कर 2-3 दिन तक काम चलाते हैं. यहां की महिलाएं पूरा समय पानी में ही लगा देती हैं. गौरतलब है कि गांव में पानी की किल्लत के कारण यहां पर कोई अपनी बेटी का रिश्ता भी नहीं करना चाहता.
मिर्जापुर जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर हलिया ब्लाक के लहुरियादह गांव में पानी की समस्या कोई आज की समस्या नहीं है. हलिया ब्लाक के लहुरियादह गांव जिले का सबसे पिछड़ा गांव है. पहाड़ पर गांव बसे होने के चलते झरना ही ग्रामीणों का सहारा है. यहां ग्रामीण 2 किलोमीटर पैदल चलकर झरने से पानी ले आने को मजबूर हैं.
कार्ड के मुताबिक ग्रामीणों को मिलता है पानी
गांव में पानी का संकट सदियों से चला आ रहा है. ऐसे में इस भीषण गर्मी में लोगों के सामने पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है. पानी सभी को मिले इसको देखते हुए ग्राम प्रधान ने हर व्यक्ति के लिए कार्ड बनवाया है. कार्ड के मुताबिक ही ग्रामीणों को पानी मिलता है. एक व्यक्ति को 15 लीटर प्रतिदिन के हिसाब से पानी दिया जा रहा है. टैंकर आने पर एक व्यक्ति को 15 लीटर के हिसाब से 3 दिन का पानी एक साथ दिया जाता है. ग्रामीण इस पानी को 3 दिन तक चलाते हैं. टैंकर पहुंचते ही ग्रामीण अपने-अपने डिब्बे और बाल्टी लेकर दौड़ पड़ते हैं और जरूरत का पानी इकट्ठा कर घरों में रख लेते हैं.
लहुरियादह गांव की आबादी लगभग 2 हजार की है. इस गांव में पानी की स्थाई व्यवस्था न होने के चलते ग्रामीण अपमानित महसूस करते हैं. ग्रामीणों की माने तो पानी की वजह से कोई अपनी बेटी का रिश्ता इस गांव में नहीं करना चाहता. ग्रामीण रिश्ते को लेकर अब चिंतित और परेशान नजर आते हैं.