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इस किले से प्रभावित होकर लिखा गया प्रसिद्ध उपन्यास 'चंद्रकांता' - मिर्जापुर का चुनार किला

ऐसा किला, जिससे प्रभावित होकर प्रसिद्ध लेखक देवकीनंदन खत्री ने चंद्रकांता उपन्यास लिख डाला... ऐसा किला, जिसका सम्बन्ध राजा भर्तृहरि और सम्राट विक्रमादित्य से जुड़ा हुआ है और जो रहस्य और तिलिस्म से भरा हुआ है... आखिर क्या है उस किले का नाम और क्या है उसका इतिहास, जानने के लिए पढ़ें ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट...

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चुनार का किला.

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Published : Dec 18, 2020, 8:24 PM IST

Updated : Dec 18, 2020, 10:51 PM IST

मिर्जापुर :दूरदर्शन पर आने वाला धारावाहिक चंद्रकांता आपने जरूर देखा होगा. नहीं देखा होगा तो इसके बारे में सुना तो जरूर ही होगा. कहा जाता है कि लेखक देवकीनंदन खत्री ने यह उपन्यास चुनार का किला से प्रभावित होकर लिखा था, जो वाराणसी से 35 किलोमीटर दूर गंगा किनारे स्थित है और पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. भगवान विष्णु के वामन अवतार से प्रमाणित कथानक से इसका संबंध बताया जाता है, जबकि प्राचीन साहित्य में चरणाद्रि, नैनागढ़ आदि नामों से यहां का उल्लेख मिलता है. बताया जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई राजा भर्तृहरि के लिए इस किले को बनवाया था. यहां पर जानने और घूमने के लिए बहुत कुछ है. अगर सरकार इस ओर ध्यान दें तो यह पर्यटन के क्षेत्र में बड़ा केंद्र बन सकता है.

गंगा नदी.

किले का प्राचीन नाम था चरणाद्रि गढ़

हिंदुओं के पवित्र धार्मिक नगरी वाराणसी जाने के लिए गंगा के लिए मार्ग प्रस्तुत करने वाले विंध्य पर्वत पर चरण आकार वाले इस किले का नाम प्राचीन नाम चरणाद्रि गढ़ रहा है. धारावाहिक चंद्रकांता के मशहूर उपन्यासकार लेखक देवकीनंदन खत्री के उपन्यास चंद्रकांता पर नीरजा गुलेरी ने यह धारावाहिक बनाया था, जो बहुत लोकप्रिय हुआ था. लेखक देवकीनंदन खत्री ने यह उपन्यास चुनार का किला और इसके आसपास की जगह से प्रभावित होकर लिखा था. किले का इतिहास गौरवशाली रहा है. इसके बारे में जानने को यहां घूमने और देखने को काफी कुछ है. धारावाहिक के समय इस चुनार किले का नाम बढ़ गया था, मगर धीरे-धीरे अब यह अतीत के पन्नों में सिमटता जा रहा है, क्योंकि रखरखाव बहुत अच्छा नहीं है.

स्पेशल रिपोर्ट...

...तो नहीं बसता वाराणसी

गंगा से सटे होने की वजह से किले से टकराकर गंगा नदी की धारा उत्तर दिशा में हो जाती है और इसके बाद गंगा सीधे काशी की ओर चली जाती हैं. हजारों वर्ष पुराने इस किले का जीर्णोद्धार उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने कराया था. इसका संदर्भ पुराणों में वर्णित राजा भर्तृहरि से है. किले का जिक्र अकबर कालीन इतिहासकार शेख अबुल फजल के किताब आईने अकबरी में भी मिलता है. कहा जाता है कि देवकीनंदन खत्री ने अपने लोकप्रिय उपन्यास चंद्रकांता में रहस्य, रोमांच और तिलिस्मी ऐयारी की पृष्ठभूमि इन्हीं इलाकों से प्रभावित होकर दी थी.

चुनार का किला.

इन शासकों का रहा कब्जा

मिर्जापुर के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा 18 अप्रैल 1924 को दुर्ग पर लगाए गए शिलापट के विवरण के अनुसार, उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद इस किले पर 1141 ईस्वी से 1191 ईस्वी तक पृथ्वीराज चौहान का कब्जा रहा. इसके बाद 1198 से शहाबुद्दीन गौरी, 1333 से स्वामी राजा, 1445 से जौनपुर के मोहम्मद शाह, 1512 से सिकंदर लोदी, 1529 से बाबर, 1530 से शेरशाह सूरी और 1536 से हूमायूं आदि जैसे शासकों का यहां पर कब्जा रहा. इस किले का पुनर्निर्माण व जीर्णोद्धार शेरशाह सूरी द्वारा कराया गया था. इस किले के चारों ओर ऊंची-ऊंची दीवारें आज भी मौजूद है. यहां से सूर्यास्त का नजारा देखना बहुत मनोहारी प्रतीत होता है. कहा जाता है कि एक बार इस किले पर अकबर ने कब्जा कर लिया था. उस समय यह किला अवध के नवाबों के अधीन था. किले में सोनवा मण्डप, सूर्य धूप घड़ी और विशाल कुआं मौजूद है.

किले में लगा शिलापट.

तिलिस्म और रहस्य से भरा है किला

चुनारगढ़ सबसे बड़ा तिलिस्म और रहस्मयी किला है. इसका प्रमाण इसकी बनावट है. इस किले को ध्यान से देखने पर तिलिस्म समझा जा सकता है. आज भी यहां पर गहरी सुरंगों का मुहाना है. चुनारगढ़ का किला प्राचीन गहरी सुरंगों से लैस पत्थर का है. इन सुरंगों की सीमाओं का कोई पता नहीं है. सुरंगों का एक जाल बिछा हुआ है. कई जगह इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं. अब सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसे बंद कर दिया गया है.

चुनार का किला.

आज भी राजा भर्तृहरि का समाधि स्थल है मौजूद

हजारों साल पुराने चुनार के किले में आज भी राजा भर्तृहरि की समाधि स्थल मौजूद है. समाधि स्थल के पुजारी अभिमन्यु नाथ गोस्वामी बताते हैं कि यह बहुत पुराना किला है. आज भी यहां पर कई सुरंगें देखने को मिलते हैं, जिसे सुरक्षा की दृष्टि से बंद कर दिया गया है. हम पीढ़ी दर पीढ़ी यहां पर पुजारी हैं. उन्होंने बताया कि यहां पर दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. कई राजाओं ने यहां पर आकर राज्य किया है.

झूठी नहीं है देवकीनंदन खत्री की बात

इतिहासकार केएम सिंह बताते हैं कि यहां पर सुरंगें और जो चंद्रकांता में देवकीनंदन खत्री ने बताया है, वह झूठा नहीं है, सही है. कुछ सुरंगें हमने भी देखी है. उन्होंने बताया कि इस किले पर पहले छावनी हुआ करता था. सैनिक दृष्टि से और व्यापारियों की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण छावनी हुआ करता था. चंद्रकांता के बाद इस किले का महत्व बढ़ गया था. वहीं घूमने आए पर्यटकों को मानना है कि जो हमने देखा है, सुना है, उसी के चलते यहां पर घूमने आए हैं, मगर यहां पर जरूरत है सरकार को इसे संरक्षित करने की, ताकि बाद में हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को बता सकें कि चुनार का कोई किला था और यहां पर कौन से राजा राज्य किए थे.

Last Updated : Dec 18, 2020, 10:51 PM IST

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